मां से बढ़ कर तो मुझे कोई
गुरु नजर नहीं आता।
गर है कोई गुरु,
उस गुरु की गुरु भी होगी उसकी मां ही,
ऐसा होता है मां बच्चे का नाता।।
घर में घुसते ही गर नजर मां न आए,
लागे खो गया कुछ कीमती सा,
नहीं कुछ भी फिर चितभाता।।
आज गुरु पूर्णिमा के दिन मां फिर
ज़िक्र तेरा ही जेहन में है आता।।।
वैसे तो तेरा अहसास ए वजूद
किसी दिन का नहीं है मां मोहताज।
तूं तो हर शय में है,सब जानते हैं,
है ये सच्चाई,नहीं कोई राज़।।
दिल की कलम से
स्नेह प्रेमचंद
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