दे साथ लेखनी,कुछ लिखेंगे ऐसा
जो करेगा जननी को श्रद्धांजलि का काम।
एक बिना ही जग लगता है सूना
माँ है ईश्वर का ही दूसरा नाम।।
वो कितनी अच्छी थी,
वो कितनी प्यारी थी,
वो हंसती थी
वो हंसाती थी
कभी शिकन अपने चेहरे पर
भूल से भी न लाती थी।
बहुत परेशान होती थी जब
तब बस माँ चुप हो जाती थी।
न गिला,न शिकवा,न शिकायत कोई
ऐसी माँ को शत शत हो परनाम।
दे साथ लेखनी,कुछ लिखेंगे ऐसा
करेगा जो जननी को श्रद्धांजलि का काम।
भोर देखी ,न दिन देखा
न रात देखी,न देखी शाम।
घड़ी की सुइयों जैसी
चलती रही सतत वो
फिर एक दिन
ज़िन्दगी को लग गया विराम।
वो आज भी हर अहसास में जिंदा है
बाद महसूस करने की नज़र चाहिए।
है जीवन माँ का एक प्रेरणा
बस प्रेरित हिने की फितरत चाहिए।।
रोम रोम माँ ऋणि है तेरा
ज़र्रा ज़र्रा करता है तुझे सलाम।।
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