हौले हौले,
पल,पहर,दिन,महीने साल बीत कर,
एक दिन ये आ ही जाता है।
कार्यक्षेत्र में कार्यकाल हो जाता है पूरा,
समय अपना डंका बखूबी बजाता है।।
हौले हौले अनेक अनुभव अपनी आगोश में समेटे,
बरस 60 का इंसा हो जाता है,
हो सेवा निवर्त कार्यक्षेत्र से,
कदम अगली डगर पर वो फिर बढ़ाता है।।
पल,पहर,दिन,महीने-------------आ ही जाता है।।
ज़िन्दगी की आपाधापी में
कई बार कोई शौक धरा रह जाता है,
जीवनपथ हो जाता है अग्निपथ,कर्तव्य पथ,
ज़िम्मेदारियों में खुद को फंसा हुआ इंसा पाता है।।
पर अब आयी है वो बेला, जब साथी हमारा खुशी से कार्यमुक्त हो कर अपने घर को जाता है,
शेष बचे जीवन में, उत्तरदायित्व बेधड़क सहज भाव से निभाता है।
पल,पहर,दिन,महीने,साल-------आ ही जाता है।।
ज़िन्दगी का स्वर्णकाल माना हम कार्यक्षेत्र में बिता देते हैं,
पर शेष बचा जीवन होता है हीरक काल,यह क्यों समझ नही लेते हैं।।
सेवानिवर्त होने का तातपर्य कभी नही होता,
क्रियाकलापों पर पूर्णविराम,
किसी अभिनव पहल, या दबे शौक को बाहर आने का मिल सकता है काम।।
यादों के झरोखों से जब झांकोगे,तो जाने कितने अनुभव अहसासों को पा जाओगे,
कितनो को ही न जाने मिली ही न होगी अभिव्यक्ति,
उन्हें इस दायरे में ले आओगे।।
हौले हौले बीत जाते हैं लम्हे,यादों के कतरे रह जाते हैं,
60 बरस तक के कार्यकाल में,कितने अनुभव हमे जाने क्या क्या सिखा जाते हैं।।
अब न उठने की जल्दी होगी,न समय पर पहुंचने की चिंता बाकी,
सहज,चिंतारहित सा जीवन बिताना,ज़रूरतमंदों का बनना साकी।।
स्वस्थ,खुश,आनन्दमग्न रहना,यही दुआ कर रहा आपके कार्यक्षेत्र का परिवार,
अपने कार्यक्षेत्र में देकर उत्कृष्ट सेवाएं,निभाया आपने उत्तम किरदार।।
अन्नदाता होता है कार्यक्षेत्र हमारा,आजीवन रहना इसके आभारी,
आज हम आंखों और भारी दिल से,विदा करती है आपको संगत सारी।।
खरामा खरामा बीत ही गए लम्हे इतने,निर्धारित समय एक दिन आ ही जाता है,
पीछे मुड़ कर जब देखता है इंसा, समय, मुट्ठी से खिसकती रेत सा पाता है।।
अब अपने हर शौक को,हकीकत का जामा पहनाना
खुशहाल से प्यारे लम्हो में,पोता पोती,नाती,नातिन को खिलाना,
सामाजिक और पारिवारिक जीवन का भरपूर आनंद उठाना
यही दुआएँ हैं आज आपके लिए,अनमोल और खास खज़ाना।।
इन दुआओं के खजाने से मालामाल होकर,
इंसा सच मे धनवान हो जाता है,
लूट भी नही सकता इस खजाने को कोई,दिनोंदिन
इज़ाफ़ा ही इंसां इसमे पाता है,
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