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Showing posts from August, 2020

काश thought by sneh premchand

काश

प्रतिभा thought by sneh premchand

सर्वोपरि

सखी

स्नेह

आकार

जब भी कूची चलाता है चित्रकार

दो पल

दो पल की इस ज़िन्दगानी में सबको अपना अपना किरदार निभाना है,आज तेरी,कल मेरी है बारी, बंधु सब को जग से जाना है,पर इस सफर में हम ज़िन्दगी के मानचित्र में कर्म की किस कूची से कौन सा रंग और कैसे भरते हैं,इस पर चित दौड़ाना है,क्या दर्द उधारे लिए किसी के,क्या वक़्त पर किसी के काम आये,क्या भौतिक सुखों के आगे भूल गए मानवता को,क्या अपने पराये के भेद बनाये,खुद की खुद से मुलाकात ज़रूर करानी है,जीवन की इस आपाधापी में ढपली प्रेम की ज़रूर बजानी है,आप क्या सोचते हैं

मां thought by sneh premchand

माँ से अदभुत, मां से सुंदर,माँ से अच्छी रचना फिर खुदा खुद भी कभी न बना पाया, तपते मरूधर सी ज़िन्दगी के सफर में माँ सबसे शीतल सा साया।।

तलाश

मिले भी तो क्या मिले

सुनामी thought by sneh प्रेमचन्द

रेत के घरौंदे बना कर  सुनामियों से करते हैं आस, उन्हें न छूना,चुपके से चली जाना, हैं कितना कथनी करनी में विरोधाभास।।

खुमार

गुलज़ार

कोशिश thought by sneh premchand

सहज होने की कोशिश ही हमे असहज बनाती है,क्या भूलूँ क्या याद करूँ,अगनित यादें जेहन में आती है,जन्म से मृत्यु तक माँ सच्चा साथ निभाती है,लेना नही जानती वो मईया, जाने क्या क्या देकर हमे चली जाती है,मिले शांति माँ की दिवंगत आत्मा को,रूह यही गुनगुनाती है

कच्चे धागे पर पक्का बन्धन by sneh प्रेमचन्द

कच्चे धागे,पर पक्का बंधन, दे देना भाई बस एक उपहार, दूँ आवाज़ जब भी दूर कहीं से भी,चले आना बहन के घर द्वार।। औपचारिकता भरा नही ये नाता, बस प्रेम से इसको निभाना हो आता, उलझे हैं दोनों ही अपने अपने परिवारों में, पर ज़िक्र एक दूजे का मुस्कान है ले आता।। उलझे रिश्तों के ताने बानो को सुलझा कर,अँखियाँ करना चाहें एक दूजे का दीदार, कच्चे धागे,पर पक्का बंधन, दे देना  भाई बस एक उपहार।। एक उपहार मैं और मांगती हूँ, मत करना भाई इनकार, दिल से निकली अर्ज़ है मेरी, कर लेना इसको स्वीकार, माँ बाबूजी अब बूढ़े हो चले हैं, निश्चित ही होती होगी तकरार, पर याद कर वो पल पुराने, करना उनमें ईश्वर का दीदार, उनका तो तुझ पर ही शुरू होकर, तुझ पर ही खत्म होता है संसार, कभी झल्लाएंगे भी,कभी बड़बड़ाएंगे भी, भूल कर इन सब को,उन्हें मन से कर लेना स्वीकार और अधिक तेरी बहना को,  कुछ भी नही चाहिए उपहार।। हो सके तो कुछ वो लम्हे दे देना, जब औपचारिकताओं का नही था स्थान, वो अहसास दे देना,जब लड़ने झगड़ने के बाद भी,बेचैनी को लग जाता था विराम, उन अनुभवों की दे देना भाई सौगात, जब साथ खेलते,पढ़ते, लड़ते,झगड़ते, पर कभी भी न द...

Thought on mother by sneh प्रेमचन्द बरगद

मां बच्चों की अनेक गलतियों पर सदा समझौते का तिलक लगाती है खुद गीले में रहकर बच्चों को सदा सूखे में सुलाती है।।      स्नेह प्रेमचन्द

ओ हमसफ़र thought by sneh premchand

तुम बरखा, मैं बदली साजन,  तेरे वजूद से ही महकता है वजूद मेरा।। बावरा मन और कुछ भी तो नहीं चाहता,  चाहता है बस एक साथ तेरा।।  मैं कतरा,तू सागर है हम नफ़स, मेरे, मेरे जीवन का है तू ही तो सवेरा।।  मैं ज़र्रा तुम कायनात पिया,  तेरे आलोक से ही भागे मेरे मन का अंधेरा।।  ओ हमसफर, ओ हमदर्द, तुझसे ही है चमकता हर रंग मेरा।।  तुम इंद्रधनुष, मैंं रंगोली पिया,  तेरे ही चहुंओर है मेरी सोच का डेरा।।।           स्नेह प्रेमचंद

गर तुम साथ हो thought by sneh premchand

गर तुम साथ हो

यादें thought by sneh prem chand

लो फिर याद आ गई

सीली सीली सी thought by sneh premchand

माटी मन की

Thought on beti by sneh premchand

है वो भी प्रेम प्रीत की हकदार

लोरी thought by sneh premchand

सातों सुर पड़ जाते है फ़ीके,  जब कोई माँ लोरी गाती हैं। माँ के आँचल में है वो पूर्णता, जहां ममता डेरा जमाती है।। मा बना दे जो भी रोटी, वो प्रसाद बन जाती है। मां दिखा से राह जो भी, वहीं मंज़िल बन जाती है।। मां सिखा से पाठ जो भी, वहीं शिक्षा बन जाती है।। मां के आचार,विचार और व्यवहार। यही तो बनते हैं,  प्रत्यक्ष और परोक्ष रूप से  हमारे संस्कार।। मित्र भी मां,मीत भी मां, शिक्षक भी मां,मार्गदर्शक भी मां। सहजता भी मां,सुकून भी मां, राह भी मां,राहगीर भी मां, दरख़्त भी मां, छांव भी मां, शहर भी मां, गांव भी मां, माँ की हर चितवन होती है चारु, मा खुशियाँ ही खुशियाँ  सहेज कर लाती है।। मां कह दे जो भी बतिया वो अमृतवाणी बन जाती है।। सातों सुर पड़ जाते हैं फीके जब कोई मां लोरी गाती है।।        स्नेह प्रेमचंद

धनवान thought by sneh premchand

ख्वाइशें कम कर दी मैंने और मैं हो गया धनवान।। अपेक्षाएं  कम कर दी मैंने और सुख की आ गयी हाथ में कमान।। संग्रह कम कर दिया मैंने मुझे जीने का आ गया विज्ञान।। देना शुरू कर दिया मैंने लगा क्यों था इस सुख से अनजान। प्रेम और करुणा से  दोस्ती  कर ली मैंने पूरा बन गया मेरा जहांन।।

दीमक thought by sneh premchand

उपेक्षा,संवादहीनता, कटाक्ष और बेरुखी ये चारों वो दीमक हैं, जो जिस रिश्ते पर लग जाएं, उसकी अंत्येष्टि ही कर देती हैं। स्नेहप्रेमचंद

मुझे भी मिला दे thought by sneh premchand

मिले थे सुदामा से,जैसे प्यारे मोहन,मुझे भी मिला दे,मुझे भी मिला दे,कान्हा से मिला दे,ओ राधा प्यारी,ओ राधा प्यारी ओ राधा प्यारी, तेरे तो हिया में बसे गिरधारी,बसे गिरधारी,बसे गिरधारी।।

कर्म thought by sneh premchand

कर्म की कहानी कर्म ही रामायण है,कर्म ही बाइबल है है कर्म ही गीता और कर्म ही कुरान। कर्म की कावड़ में जल भर कर मेहनत का इंसा बन जाता है सच मे महान।। कर्म की जिसने पढ़ ली पाती, हो गया उसको पूरा ज्ञान।।। कर्म की लेखनी से मेहनत की किताब लिखने वाला होता है धनवान।।

आंसू thought by sneh premchand

पौंंछ लो आंसू सखी द्रौपदी, तुमने बुलाया,मैं  दौड़ा चला आता हूँ।।।। जब जब होती है हानि धर्म की, मैं यूँ ही चल, आ जाता हूं । धर्म की रक्षा के लिए, साधुओं के हित के लिए, नारी रक्षा तो फिर धर्म है सबका, जो हुआ आज,सोच सन्न हो जाता हूँ।। हुआ कलंकित इतिहास आज है। कोई नए युग का आज हुआ आगाज़ है।। हर कोई है अपराधी तेरा, पर मैं  तेरी लाज बचाता हूँ।। तेरे समर्पण में थी वो ताकत, कि मैं दौड़ा चला आता हूँ।।। युग आएंगे,युग जाएंगे तेरी व्यथा न जन भुला पाएंगे।। तेरा चीर बढ़ा कर मैं, अंधेरे में विश्वास का दीप जलाता हूँ।। पोंछ लो आँसू, सखी द्रौपदी, तुमने बुलाया,मैं दौड़ा चला आता हूँ।।

ओटन लगे कपास thought by sneh premchand

आये थे हरि भजन को,ओटन लगे कपास। प्रमुख को बना दिया गौण हमने, प्रमुख को पाने का सही दिशा में नही किया प्रयास।। ज़िन्दगी बीत गयी सारी, खुद की खुद से ही नही हो पाई मुलाकात। यही भय खाता रहा उम्रभर,लोग क्या कहेंगें। जिन लोगों को तनिक भी नहीं चिंता हमारी, वो हमारे जीने के सलीक़े के फार्म कैसे भरेंगे??? आयी जब समझ ये सारी कहानी, लगा,क्यों करी हमने नादानी।। रह गए यूँ ही लगाते कयास।।। आये थे हरि भजन को,ओटन लगे कपास।।

मज़ाक

कटाक्ष और मज़ाक की मध्यरेखा होती है बंधु अति महीन। टूटता है दिल यदि किसी कथन से, हमारे,टूट जाता है संग में और यकीन।। हमारे वचन न दुखाएं हिवड़ा किसी का, बस यही कहता है प्रेमवचन।। क्या लाए थे,क्या ले जाएंगे, यहीं रह जायेगा तेरा इकठा किया धन।।।

सात सुर। thought by sneh premchand

सातों सुर पड़ जाते है फ़ीके, जब कोई माँ लोरी गाती हैं। माँ के आँचल में है वो पूर्णता,जहां ममता डेरा जमाती है।। मा बना दे जो भी रोटी,वो प्रसाद बन जाती है। माँ की हर चितवन होती है चारु,मा खुशियाँ ही खुशियाँ सहेज कर लाती है।।

कम कर दी। thought by sneh premchand

ख्वाइशें कम कर दी मैंने और मैं हो गया धनवान।। अपेक्षाएं  कम कर दी मैंने और सुख की आ गयी हाथ में कमान।। संग्रह कम कर दिया मैंने मुझे जीने का आ गया विज्ञान।। देना शुरू कर दिया मैंने लगा क्यों था इस सुख से अनजान। प्रेम और करुणा से दोस्ती कर ली मैंने पूरा बन गया मेरा जहांन।।

भरा भरा

ऐसे आ जाना कभी अचानक thought by sneh premchand

ऐसे आ जाना कभी अचानक

राफ्ता

बाज़ औकात

Poem on mother by sneh premchand तुरपाई

तुरपाई रिश्तों की उधड़ी तुरपन की, माँ करती रहती है तुरपाई। ममता के दीपक में उसने, सदा करुणा की अलख जलाई।। संभालती है उन्हें,सहेजती है उन्हें, पर लबों पर कभी अपने, उफ्फ  तक न लाई।। रिश्तों की उधड़ी तुरपन की .........................तुरपाई।। प्रतिफल उसे मिले न मिले पर दुआओं में उसके कमी न आई।। दिल में बेशक हों तूफ़ान हजारों, ऊपर से सदा वो है मुस्कराई।। वो न रुकी,न थमी, चलती रही कर्म की हांडी में सफलता की सब्जी बनाई।। रिश्तों की उधड़ी............तुरपाई।। ममता के दीपक में करुणा की,  सदा ही उसने अलख जलाई।। कर्म की खिचड़ी रही पकाती, न बोली,न रोई, न चीखी,न चिल्लाई।। औराक ए परेशां सी ज़िन्दगी को मां ही तो है समेट कर लाई।। रेज़ा रेजा से ख्वाबों पर, पुर सुकून होने की मोहर लगाई।। रिश्तों की उधड़ी तुरपन की,  माँ करती रहती है तुरपाई।।।        स्नेह प्रेमचंद

कभी नहीं मरती

माँ कभी मरती नही,माँ से ओत प्रोत है हमारे विचार,जाने अनजाने अनेक संस्कारों को कर गयी रोपित हिवड़े में हमारे,माँ ने अपनी सोच से कर दिया निर्मित हमारा व्यवहार,कर्म की लेखनी से रच दिया इतिहास सफलता का,माँ ने चित में नही आने दिए विकार,माँ के अहसास से ही हो जाता है पूरा संसार

Though on God Ganesh by sneh premchand

विघ्न हरो हे विघ्नहर्ता।।

Thought on flower by sneh premchand महक

फूलों ने अपने वजूद की महक से, एक पाठ तो बखूबी सिखाया है। बेशक हों दामन में कितने ही कांटे, पर सुमन ने अपनी महक से पूरा चमन  महकाया है।। पुष्प के जैसे ही कुछ तो  होते हैं लोग भले, बेशक हों राह में लाख मुसीबत, पर सुकून भरा होता उनका साया है।।           स्नेह प्रेमचंद

किताबें

किताबें thought by sneh premchand

नज़र

नजर तो आते हैं मगर

याद आई

माँ आज मुझे फिर याद आयी, तेरे आँचल की ठंडी छाया। सब लगता था सुंदर, मोहक तेरा होना था मुझे बहुत भाया।।

Poem on mother by sneh premchand भोर

हसरतभरी निगाहों ने जब देखा माँ की ओर सच मे माँ लगती थी जैसे हो कोई खिली सी भोर।। सपने देखेगी अपनी आँखों से हमारे लिये, उन्हें पूरा करेगी अपनी मेहनत से हमारे लिए, बनाया होगा जब माँ को खुद ने देख कर अपनी ही रचना,हो गया होगा भाव विभोर।। चलो मन वृन्दावन की ओर प्रेम का रस जहाँ छलके है, कृष्ण नाम से भोर।। माँ यशोदा  ही देख कान्हा की लीलाएँ कहती थी प्रेम से नन्द किशोर।।। मैं नही खायो माखन मईया सच नहीं मैं हूँ माखनचोर। माँ बच्चों की ऐसी ही कहानियां सुन द्रवित हो जाते हैं हिवड़े कठोर।।

Thought on mother by sneh premchand सिरहन

कितनी यादें जुडी हुई हैं  माँ, तेरे अस्तित्व के साथ। सोच कर  सिरहन सी  उठती है हिया में, ज़िन्दगी का अनुभूतियों से  परिचय करवाने वाली का  सर पर अब रहा नही हाथ।।          स्नेह प्रेमचंद

Thought on mother by sneh premchand मंज़र

हर मंज़र धुन्दला जाता है, माँ आँखों में आ जाता है पानी। क्या भूलूँ क्या याद करूँ मैं, हैं जेहन में तेरी अगणित निशानी।। ज़िन्दगी और कुछ भी तो नहीं, है सच में बस तेरी और मेरी कहानी।।        स्नेह प्रेमचंद

मां सा प्यार thought by sneh premchand

क्या भूलूँ क्या याद करूँ, हैं माँ की यादें हज़ारों हज़ार। कोई नही कर सकता जग में, माँ के जैसा सच्चा प्यार।।

नदिया सागर thought by sneh premchand

एक रूप है,काम अनेक हैं, है ऐसी नदिया और सागर की कहानी। वो चलती रहती है,रुकती नही है, सागर ने ताउम्र आगे न बढ़ने की है ठानी। पानी वही है,ज़िंदगानी अलग है, बहती नदिया है दीवानी। सागर शांत है,गहरा है, जाने क्या क्या अपने समाये हुआ है  उसका चेहरा नूरानी।

चल रे कागा thought by sneh premchand

चल रे कागा दूर कहीं, जहाँ हो केवल प्रेम और करुणा  का सुंदर डेरा। ममता सुता और सौहार्द है बेटा जिनका,चलो वहीं करते हैं रैन बसेरा।।      स्नेह प्रेमचंद