प्रश्न हैं हम,तो जवाब है माँ,
अक्षर हैं हम तो पूरी किताब है मां,
जुगनू हैं हम,तो आफताब है मां,
ज्योत्स्ना हैं हम,तो इन्दु है मां,
कतरा हैं हम,तो सिंधु है मां,
ज़र्रा हैं हम तो कायनात है मां,
ईश्वर की सबसे सुंदर सौगात है मां,
कश्ती हैं हम तो माझी है मां,
मिल जाते हैं रब यहीं,गर राज़ी है मां,
पंख हैं हम तो परवाज़ है मां,
गीत हैं हम तो साज है मां,
कंठ हैं हम तो आवाज़ है मां,
नयन हैं हम तो नूर है मां,
कदम हैं हम तो सफ़र है मां,
मिट्टी हैं हम तो फसल है मां,
रियाज़ हैं हम तो ग़ज़ल है मां,
प्यास हैं हम तो तृप्ति है माँ,
समस्या हैं हम,तो समाधान है माँ,
विधि का सबसे सुंदर विधान है मां,
संकोच हैं हम तो सहजता है माँ,
धूप हैं हम तो ठंडी छाँव है माँ,
पलायन हैं हम तो ज़िम्मेदारी है माँ,
ख्वाब हैं हम तो हक़ीक़त है मां,
परीक्षा हैं हम तो परिणाम हैं मां,
सफर हैं हम तो मंज़िल है मां,
हर जख्म का मरहम है मां,
मां को परिभाषित करना नहीं आसान।
एक अक्षर के छोटे से शब्द मेें
सिमटा हुआ है पूरा जहान।।
मां खुदा का भेजा हुआ ऐसा फरिश्ता है, जो सब को सहजता से मिल तो जाता है,पर सबको उस फ़रिश्ते की कद्र उसके इस जहां से रुखसत होने के बाद पता चलती है।।
स्नेह प्रेमचंद
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