Skip to main content

वो भी थकती है thought by sneh प्रेमचन्द

वह भी तो थक जाती है।
बेशक निज मन की,
कभी खुलकर कह नहीं पाती है।
जिम्मेदारी का ओढ़ दुशाला,
कर्तव्य की ठंड भगाती है।
विज्ञान के तर्क सरीखे, इस जहां में,
कविता सी बहे जाती है।।
 अपनी इच्छाओं को समझौतों 
का अक्सर परिधान पहनाती है।
जाने किस माटी से बनाया है 
उसे खुदा ने, 
पूरी कायनात भी समझ नहीं पाती है ।।
अपेक्षाओं की चादर पर अक्सर,
कर्म के सिरहाने बन जाती है।।
परंपरा की पटडी पर बन रेल
निर्वाहन की,
सरपट दौडे चली जाती है।।
वह भी तो थक जाती है।।
बन ज़िन्दगी की पावन गंगा
गंगोत्री से गंगासागर के सफर तक,
खुद में जाने क्या क्या
 समेटे जाती है।।
वह भी तो थक जाती है।।
उम्मीदों के सागर पर,
शान्ति का बांध बनाती है।।
अपने माँ बाबुल की लाडली,
हर ज़िद मनवाने वाली,
फिर मोम सी पिंघल जाती है।।
बात बात पर रूठने वाली,
बाद में बिन गल्ती के भी,
औरों को बार बार मनाती है।
प्राथमिकताओं की फेरहिस्त में,
खुद को पीछे किए जाती है।
न गिला,न शिकवा,न शिकायत कोई
खामोशी और मुस्कान को,
अपनी सहेली बनाती है।।
रूठना छोड़ देती है सदा के लिए,
सहज होने की कोशिश में,
अक्सर असहज सी हो जाती है।।
वो रुकती नहीं,वो घबराती नहीं,
वो नारी नारायणी बन जाती है।।
वह भी तो थक जाती है।।
ऊपर से बेशक मुस्कुराती हो,
पर भीतर से तिनका तिनका सी
 बिखर जाती है ।।
वह भी तो थक जाती है ।
कभी शौहर का, कभी बच्चों का
 सबका ही ख्याल ताउम्र रखे जाती है ।
उसकी शक्ल देख हरारत पहचानने वाली मां भी तो 
एक दिन चली जाती है ।
नहीं दिखती फिर उसकी थकान
 और किसी को,
 वह चाबी वाले खिलौने सी चलती जाती है।
काम करे तो ही अच्छी और संस्कारी
कहलाती है।।
 वह भी तो थक जाती है ।
क्यों बात ये छोटी सी बड़े से जेहन को समझ नहीं आती है ।
वह भी तो थक जाती है।।
स्नेह प्रेमचन्द

Comments

Popular posts from this blog

वही मित्र है((विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

कह सकें हम जिनसे बातें दिल की, वही मित्र है। जो हमारे गुण और अवगुण दोनों से ही परिचित होते हैं, वही मित्र हैं। जहां औपचारिकता की कोई जरूरत नहीं होती,वहां मित्र हैं।। जाति, धर्म, रंगभेद, प्रांत, शहर,देश,आयु,हर सरहद से जो पार खड़े हैं वही मित्र हैं।। *कुछ कर दरगुजर कुछ कर दरकिनार* यही होता है सच्ची मित्रता का आधार।। मान है मित्रता,और है मनुहार। स्नेह है मित्रता,और है सच्चा दुलार। नाता नहीं बेशक ये खून का, पर है मित्रता अपनेपन का सार।। छोटी छोटी बातों का मित्र कभी बुरा नहीं मानते। क्योंकि कैसा है मित्र उनका, ये बखूबी हैं जानते।। मित्रता जरूरी नहीं एक जैसे व्यक्तित्व के लोगों में ही हो, कान्हा और सुदामा की मित्रता इसका सटीक उदाहरण है। राम और सुग्रीव की मित्रता भी विचारणीय है।। हर भाव जिससे हम साझा कर सकें और मन यह ना सोचें कि यह बताने से मित्र क्या सोचेगा?? वही मित्र है।। बाज़ औकात, मित्र हमारे भविष्य के बारे में भी हम से बेहतर जान लेते हैं। सबसे पहली मित्र,सबसे प्यारी मित्र मां होती है,किसी भी सच्चे और गहरे नाते की पहली शर्त मित्र होना है।। मित्र मजाक ज़रूर करते हैं,परंतु कटाक...

बुआ भतीजी

सकल पदार्थ हैं जग माहि, करमहीन नर पावत माहि।।,(thought by Sneh premchand)

सकल पदारथ हैं जग मांहि,कर्महीन नर पावत नाहि।। स--ब कुछ है इस जग में,कर्मों के चश्मे से कर लो दीदार। क--ल कभी नही आता जीवन में, आज अभी से कर्म करना करो स्वीकार। ल--गता सबको अच्छा इस जग में करना आराम है। प--र क्या मिलता है कर्महीनता से,अकर्मण्यता एक झूठा विश्राम है। दा--ता देना हमको ऐसी शक्ति, र--म जाए कर्म नस नस मे हमारी,हों हमको हिम्मत के दीदार। थ-कें न कभी,रुके न कभी,हो दाता के शुक्रगुजार। हैं--बुलंद हौंसले,फिर क्या डरना किसी भी आंधी से, ज--नम नही होता ज़िन्दगी में बार बार। ग--रिमा बनी रहती है कर्मठ लोगों की, मा--नासिक बल कर देता है उद्धार। हि--माल्य सी ताकत होती है कर्मठ लोगों में, क--भी हार के नहीं होते हैं दीदार। र--ब भी देता है साथ सदा उन लोगों का, म--रुधर में शीतल जल की आ जाती है फुहार। ही--न भावना नही रहती कर्मठ लोगों में, न--हीं असफलता के उन्हें होते दीदार। न--र,नारी लगते हैं सुंदर श्रम की चादर ओढ़े, र--हमत खुदा की सदैव उनको मिलती है उनको उपहार। पा--लेता है मंज़िल कर्म का राही, व--श में हो जाता है उसके संसार। त--प,तप सोना बनता है ज्यूँ कुंदन, ना--द कर्म के से गुंजित होता है मधुर व...