प्रेम वृक्ष पर सिर्फ और सिर्फ स्नेहसुमन ही खिलते हैं।यह कोई राज नही,यथार्थ है।प्रेम का आधार कभी चारु चितवन नही, अच्छा हृदय होता है।अच्छा हृदय पूर्णिमा के इंदु की तरह आलोक का उदय करता है,लगता है जैसे प्रेम हिंडोले में मेघों से निकल कोई स्वप्नलोक से परी आयी हो,ऐसा नयनाभिराम दृश्य जोश पैदा करता है,यह अभिनव नही पुरातन सोच है।पूरब में जब आरुषि दिखती है,सब सुंदर हो जाता है,नीला अम्बर मानो अपने अंक में नीलम को समेट लेता है।जैसे माता सावित्री, सिंह सवारी कर रही हो।सब प्रेममय सुहानी सी छटा लिए हो जाता है,दूर किसी मंदिर के घड़ियाल से पावनी सी महक आती है,जैसे कोई नरेश मन्दिर में दर्शन के लिए आया हो।सब प्रेममय हो जाता है,अमिट से लगता है।
कह सकें हम जिनसे बातें दिल की, वही मित्र है। जो हमारे गुण और अवगुण दोनों से ही परिचित होते हैं, वही मित्र हैं। जहां औपचारिकता की कोई जरूरत नहीं होती,वहां मित्र हैं।। जाति, धर्म, रंगभेद, प्रांत, शहर,देश,आयु,हर सरहद से जो पार खड़े हैं वही मित्र हैं।। *कुछ कर दरगुजर कुछ कर दरकिनार* यही होता है सच्ची मित्रता का आधार।। मान है मित्रता,और है मनुहार। स्नेह है मित्रता,और है सच्चा दुलार। नाता नहीं बेशक ये खून का, पर है मित्रता अपनेपन का सार।। छोटी छोटी बातों का मित्र कभी बुरा नहीं मानते। क्योंकि कैसा है मित्र उनका, ये बखूबी हैं जानते।। मित्रता जरूरी नहीं एक जैसे व्यक्तित्व के लोगों में ही हो, कान्हा और सुदामा की मित्रता इसका सटीक उदाहरण है। राम और सुग्रीव की मित्रता भी विचारणीय है।। हर भाव जिससे हम साझा कर सकें और मन यह ना सोचें कि यह बताने से मित्र क्या सोचेगा?? वही मित्र है।। बाज़ औकात, मित्र हमारे भविष्य के बारे में भी हम से बेहतर जान लेते हैं। सबसे पहली मित्र,सबसे प्यारी मित्र मां होती है,किसी भी सच्चे और गहरे नाते की पहली शर्त मित्र होना है।। मित्र मजाक ज़रूर करते हैं,परंतु कटाक...
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