जो लौट के घर नही आये।।।।
आज़ादी की पावन बेला पर,
आओ मिलकर शीश झुकाएं।
नमन करें उन शहीदों को हम,
जो लौट के घर नही आये।
यूँ ही नही मिली हमे आज़ादी,
आओ इतिहास के पन्ने खोले ।
जज्बा,जोश और जुनून,
हर वीर की रग रग में था बोले।
आओ दें श्रद्धांजलि उन जांबाजों को,
नयनों को आंसुओं से धो लें।
सहेजें आज़ादी,रहें प्रेम से,
साम्प्रदायिकता का ज़हर
अब और न घोलें।
15 अगस्त सन 47 को मिली थी
अपने देश को आज़ादी।
मेहनत आखिर रंग लाई,
चाहे कितने वीरों ने अपनी
जान गंवा दी।।
उजड़ा सुहाग जाने कितनी मांगों का,
न जाने कितने नैना रोये।।
माँओं ने खोये लाल,तो बहनो ने
अपने भाई खोये।
बड़ा भारी मोल था आज़ादी का,
आओ सब को अवगत करवाएँ।
दें श्रद्धांजलि उन शहीदों को हम,
जो लौट के घर नही आये।।।
भरत माता के वीर सपूत थे,
जांबाज वे सही कहलाये।
आज़ादी की पावन बेल पर
आओ मिल कर शीश झुकाएं।।।।
स्नेह प्रेमचंद
Comments
Post a Comment