अहम से वयं,स्व से सर्वे, मैं से हम,मेरे से हमारा,सबका ,सदा ही बेहतर होता है।
आता है कई बार ये समझ देर से,
पहले इंसा खुद ही विचलित होता है।
सुलझती हैं जब गुत्थियां जीवन की,
तब ये अनुभव होता है।
अहम से वयम===========होता है।।
खुद के लिए जिये तो क्या जीये,
किसी के दर्द उधारे लेने से,
जीवन सार्थक होता है।
काटता है फल वही,
बीज जो इंसा बोता है।।
अहम से वयम=======होता है।।
गर कोई बंधु सोता है भूखा,
नहीं फिर हमारा भी छपन भोगों,
पर कोई भी अधिकार।
एक है रोटी तो बाँट के खा लें,सबल निर्बल का जीवन सकता है सुधार।।
ठिठुरता है गर कोई जाडे में,
नरम बिछोनो पर हक हमारा,
भी तो नही होता है।
छत नही गर किसी के सर पर,
बंगलों में रहने का इंसा,
झूठे ही गौरव ढोता है।
अहम से वयं,स्व से सर्वे,मैं से हमारा सदा ही बेहतर होता है।।।
सांझे सुख दुख होते हैं जब,
अर्थ ही विविध जीवन का होता है।।
एक ही वृक्ष के हैं हम फल फूल पत्ते
इस सोच के अंकुर,
क्यों दिल में इंसा नहीं बोता है।।
जाने कब आ जाए शाम जीवन की,
क्षण भंगुर से इस जीवन में,
कुछ भी तो स्थाई नहीं,क्यों इस विचार
को जान बूझ कर खोता है।।
अहम से वयम,स्व से सर्वे सदा ही बेहतर होता है।।
साथ खड़े होते हैं जब हम एक दूजे के,
ग़म आधा,सुख सच में दूना होता है।।
जागीरें बांटे ज़रूरी तो नहीं पर प्रेम बांटने से मन भीतर से हर्षित होता है।।
स्नेह प्रेमचंद
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