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Poem on mother by sneh premchand तुरपाई

तुरपाई
रिश्तों की उधड़ी तुरपन की,
माँ करती रहती है तुरपाई।
ममता के दीपक में उसने,
सदा करुणा की अलख जलाई।।

संभालती है उन्हें,सहेजती है उन्हें,
पर लबों पर कभी अपने,
उफ्फ तक न लाई।।

रिश्तों की उधड़ी तुरपन की .........................तुरपाई।।

प्रतिफल उसे मिले न मिले
पर दुआओं में उसके कमी न आई।।
दिल में बेशक हों तूफ़ान हजारों,
ऊपर से सदा वो है मुस्कराई।।
वो न रुकी,न थमी, चलती रही
कर्म की हांडी में सफलता की सब्जी बनाई।।
रिश्तों की उधड़ी............तुरपाई।।

ममता के दीपक में करुणा की,
 सदा ही उसने अलख जलाई।।
कर्म की खिचड़ी रही पकाती,
न बोली,न रोई, न चीखी,न चिल्लाई।।
औराक ए परेशां सी ज़िन्दगी को
मां ही तो है समेट कर लाई।।
रेज़ा रेजा से ख्वाबों पर,
पुर सुकून होने की मोहर लगाई।।

रिश्तों की उधड़ी तुरपन की,
 माँ करती रहती है तुरपाई।।।
       स्नेह प्रेमचंद

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