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Poem on mother

जहां दर्द पाता हो चैन,
जहां बेधड़क से गुजरे दिन रैन,
जहां खुल कर हंसना
खुल कर रोना आए,
जहां बिन कहे ही
मन की बात समझी जाए,
जहां घर मे घुसते ही
माँ नज़र आए,
जहां पापा अपनी ही धुन में
कुछ जाते हों समझाए,
जहां भाई बहन अपने अपने
कहानी किस्से बेहिचक दोहराएं,
जहां दोस्त घर के बाहर घण्टों
खड़े जाने क्या क्या बतियाए,
जहां भविष्य की चिंता कभी
वर्तमान को न डसती जाए,
उसे अपना घर कहते हैं।।

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