वेे जाने क्या क्या सिखा गए,
गीता का पाठ पढ़ा गए।।
नहीं धर्म कोई कर्म से बढ़कर,
जन-जन को बात बता गए।।
वो जाने क्या क्या सिखा गए,
दौलत नहीं कोई मित्र से बढ़कर,
सुदामा के जरिए बतला गए।।
वे जाने क्या क्या सिखा गए।।
पाप नहीं कोई अन्याय से बढ़कर,
बढ़ा चीर समझा गए।।
वो जाने क्या क्या सिखा गए।।
गीता का पाठ पढ़ा गए।।
पीताम्बर धारी,होठों पर मुरलिया
कंठ बैजन्ती माल,
तेरी हर लीला थी न्यारी,
व्यक्तित्व तेरा था बड़ा कमाल।।
अपनी हर लीला से हमें जाने
क्या क्या सिखा गए।।
वे गीता का पाठ पढ़ा गए ।
भाव नहीं कोई प्रेम से बढ़कर,
राधा संग रास रचा कर,
पूरे जग को दिखला गए ।।
वे जाने क्या क्या सिखा गए।।
संघर्ष भरा रहा जीवन उनका,
पर हर राह पर महक अपने वजूद
की फ़ैला गए।।
वे जाने क्या क्या सिखा गए।।
नहीं ईश्वर होता कभी भी,
माता-पिता से बढ़कर,
सबके जेहन में बसा गए।।
नहीं पूजनीय कोई नारी सा,
नारी अस्मिता को बचा गए।।
वे जाने क्या क्या सिखा गए।।
पाठ गीता का सबको पढ़ा गए।।
नहीं विध्वंसक कुछ भी युद्ध से बढ़कर,
सारे परिणाम युद्ध के दिखा गए।।
वे जाने क्या-क्या सिखा गए।।
शांति से बेहतर विकल्प कोई नहीं,
बन शांति दूत समस्त विश्व को
समझा गए।।
वे जाने क्या क्या सिखा गए।।
एक व्यक्तित्व पर अनेक किरदार,
कितनी सहजता से वे,
सारे के सारे ही निभा गए।।
वे जाने क्या क्या सिखा गए।।
होती है जब जब हानि धर्म की,
लेते हैं कृष्ण से अवतार जन्म,
अपने जन्म से सब को यह
बतला गए।।
वे जाने क्या-क्या सिखा गए।।
संग्रह नहीं परिग्रह है जीवन की संजीवनी बूटी,
निज जीवन से सबको यह बतला गए।।
वे जाने क्या क्या सिखा गए।।
विषम परिस्थितियों को कोसने की बजाए होता है बेहतर,उन्हें बेहतर बनाना,
सबके जहन में इस सोच के अंकुर उपजा गए।।
वे जाने क्या क्या सिखा गए।।
मां छूटी, पिता छूटे, जन्म स्थान छूटा,
राधा छूटी, बालसखा छूटे,
फिर भी बिखरे नहीं निखरते गए,
सकारात्मकता का पाठ पढ़ा गए।।
वे जाने क्या क्या सिखा गए।
गीता का पाठ पढ़ा गए ।।
कुछ भी छूटे, पर चलते जाना है,
हर किरदार बखूबी निभा गए।।
वे जाने क्या-क्या सिखा गए।।
मोह से बढ़कर होता प्रेम है,
प्रेम का पाठ सकल जहान को पढ़ा गए।।
वे जाने क्या क्या सिखा गए।।
क्या होती है गरिमा रिश्तों की,
सब को ये समझा गए।।
गलत का साथ देना भी गलत है,
न्याय की परिभाषा बतला गए।।
माखन चोर नहीं, चित चोर हैं वे,
सबका ही दिल चुरा गए।।
स्नेह का सागर,चिंतन चेतना का,
गागर प्रीति की,मंथन आत्मा का,
ग्वाला गोपियों का,गुंथन ज्ञानियों का,
नटखट माखन चोर, मोर पंख धारी।
क्या क्या विशेषण दें उनको,
ज्ञान ज्योत वे सुदर्शन धारी।।
निर्लिप्त योगेश्वर,चेतना चिंतक,
कोई कहे मोहन, कोई गिरधारी।।
हो सकता है क्या,
कान्हा सा कोई भी अवतारी।।
हर रूप में अपने को और भी आलोकित बना गए।।
वे जाने क्या क्या सिखा गए।।
कृष्णमय है आज ज़र्रा ज़र्रा,
द्वार सबकी आत्मा के खटखटा गए।।
वे जाने क्या क्या सिखा गए।।
स्नेह प्रेमचंद
Comments
Post a Comment