परिंदे
हे,नादाँ परिंदे,अब बेला जागने की आयी है
हम क्यों और कैसे इतना सो गए?
मत दौड़ो इस खोखली सी दौड़ में तुम,
लगता है मानसिक रूप से पंगु से हम हो गए।।
भूल गए पलनहारों को,एक नई दुनिया में खो गए।
कर्तव्य कर्म हैं कुछ तो हमारे,हमे उनको श्रद्धा से निभाना है।
जीवन तो है एक सराय बंधु,
थोड़ा रुक कर हमें चले जाना है।।
अपराधबोध होगा जिस दिन,
चेतना चित में हलचल मचाएगी।
आत्मग्लानि उपजेगी उस दिन भाई,
समय की बेला लौट नही आएगी।।
हृदय की पत्ती पढ़ना भूले हम,
स्वार्थ में मानो अंधे से हो गए।
छोड़ बीमार औऱ तन्हा से माँ बाप को
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