आये थे हरि भजन को,ओटन लगे कपास।
प्रमुख को बना दिया गौण हमने,
प्रमुख को पाने का सही दिशा में नही किया प्रयास।।
ज़िन्दगी बीत गयी सारी,
खुद की खुद से ही नही हो पाई मुलाकात।
यही भय खाता रहा उम्रभर,लोग क्या कहेंगें।
जिन लोगों को तनिक भी नहीं चिंता हमारी,
वो हमारे जीने के सलीक़े के फार्म कैसे भरेंगे???
आयी जब समझ ये सारी कहानी,
लगा,क्यों करी हमने नादानी।।
रह गए यूँ ही लगाते कयास।।।
आये थे हरि भजन को,ओटन लगे कपास।।
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