जब सबको मिल जाएगा,
रोटी कपड़ा और मकान।
दीया जलेगा हर आशियाने में,
फैलेगा आलोक,हटेगा तमस,
न रहेगा कोई भी कोना वीरान।।
तब समझ लेना असली मायनों
में आजादी आ गई।।
खुली हवा में,खुले सांसों की महक फिज़ा में छा गई।।
जब शिक्षा के भाल पर,
लगेगा टीका संस्कारों का,
होंगे मन से दूर समस्त आधि, व्याधि और विकार।।
जब हर हृदय सिंधु में निर्बाध गति से,
बहेगी करुणा धार।
जब मात्र जिह्वा के स्वाद के खातिर, निर्दोष बेजुबान प्राणियों पर,
नहीं चलेगी कटार।
जब किसी भी आंचल की,
अस्मत नहीं होगी तार तार।।
जब सरहदों पर अम्म चैन सौहार्द,
का होगा सहज प्रेम भरा संचार।
जब वतन के जवान और किसान को
मिलेंगे उनके पूरे अधिकार।।
जब पूरा ही विश्व बन जाएगा एक परिवार।।
तब समझना सही मायनों में
आजादी आ गई।।
जब हर पंख को मिलेगी,
अनन्त गगन में ऊंची परवाज़।
जब साहित्य कला संगीत की
त्रिवेणी में बजेगा,
विविधता में एकता का साज।।
जब शोषण और अत्याचार के
खिलाफ उठेगी एक जुट होकर पूरे वतन की आवाज़।
जब बेरोज़गारी हटा,
सबको रोजगार देने का,
हो जाएगा आगाज़।
तब समझना सही मायनों में
आजादी आ गई।।
जब मलिन मनों से
अंधकार के धुंध कुहासे हट जाएंगे।
जब मासूम से बचपन के,
नन्हे हाथों में झूठे बरतनों की जगह,
स्कूल का बैग पकड़ाएंगे।
जब मज़बूरी और बेबसी को सु अवसरों का परिधान पहनाएंगे।
जब नारी तन के भूगोल को जानने की बजाए,
नारी के मनोविज्ञान को समझ पाएंगे।।
जब ज़रूरतों को शौक़ से पहले प्राथमिकता दिलवाएंगे।
जब हम सबके हैं,सब हमारे हैं,इस अच्छी भावना का सबके दिल में अनहद नाद बजाएंगे।।
तब समझना सही मायनों में आजादी आ गई।।
जब बेटा बेटी को समभाव का मुकाम दिलाएंगे,
जब देशभक्ति की अलख हर नन्हे दिल में भी जलाएंगे,
जब जात पात,धर्म मजहब से
उपर उठ कर मानवता का पाठ पढ़ाएंगे।
होगा अन्याय जब किसी एक का,
सब छोड़ मौन,आगे बढ़ कर आएंगे।
शौक़ न सही पर ज़रूरतें तो सबकी हों पूरी,
ऐसी सोच को जीवन आधार बनाएंगे।
जब सर्वे भवन्तु सुखिन को मात्र कहावत में नहीं,
वास्तविक रूप में कर पाएंगे।
मजहब नहीं सिखाता आपस में बैर रखना,
जब इस भाव की अखंड ज्योत जलाएंगे।
लोभ,मोह, मद,काम,क्रोध से विकारों पर सही मायनों में विजय सब पाएंगे।
जब हर रिश्ते का आधार प्रेम है,
तब समझना सही मायनों में आजादी आ गई।।
स्नेह प्रेमचंद
Sahi mayne mein wahi azaadi hogi..bahut sunder 👌
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