सच्चे मन से पितरों के प्रति किया गया क्रियाकर्म श्राद्ध कहलाता है।
जीते जी गर बुज़ुर्गों की,की जाए सेवा, सत्कर्म का सच्ची आस से गहरी नाता है।
वो जाने क्या क्या,कैसे कैसे किन जतनो से हमारे लिए करते है प्रयास।
हम इसे ले लेते हैं बहुत हल्के में,बाद में होता है आभास।
सही समय पर सही कर्म जीवन मे होते हैं ज़रूरी।
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