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आज वो फिर से याद आई Thought by Sneh premchand

आज वो फिर से याद आयी,माँ की दीवाली पर मन से की गयी बेहतरीन सफाई,वो ईंटों के फर्श को बोरियों से रगड़ रगड़ कर कर देना लाल,वो पूरे घर को पाइप से धोना,माँ सच में थी तू बड़ी कमाल,वो काम खत्म कर माँ संग तेरे जो जाना होता था बाजार,अब रोज़ बाज़ारों में जा कर भी नही मिलती ख़ुशी वो,तेरी  कर्मठता हर शै को कर देती थी गुलज़ार,वो खील पताशे आज के छप्पन भोगों से भी होते थे माँ लज़ीज़,वो आलू गोभी की सब्जी संग माखन के ,तृप्ति होती थी कितनी अज़ीज़,माँ सच में तेरी प्यार की दस्तक से खिल सी जाती थी दिल की दहलीज,जोश,उत्साह,तरंग से भरपूर जीवन का माँ तूने विषम परिस्थितियों में भी क्र दिया शंखनाद,शायद ही कोई शाम होगी ऐसी,जब आयी न होगी तेरी याद,ज़िन्दगी के सफर में तेरे साथ ने प्यारा सा एक साथ निभाया,तुझे कह लेते थे मन की पाती, ये बाकि जहाँ तो लगता है पराया, तू कितनी आपसी सी थी,तू कितनी  सच्ची सी थी,आज ये एहसास और जा रहा है गहराया,तू जहां रहे,मिले शांति तेरी दिवंगत आत्मा को,दीवाली के इस पावन पर्व पर दिल ने दोहराया।।

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वही मित्र है((विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

कह सकें हम जिनसे बातें दिल की, वही मित्र है। जो हमारे गुण और अवगुण दोनों से ही परिचित होते हैं, वही मित्र हैं। जहां औपचारिकता की कोई जरूरत नहीं होती,वहां मित्र हैं।। जाति, धर्म, रंगभेद, प्रांत, शहर,देश,आयु,हर सरहद से जो पार खड़े हैं वही मित्र हैं।। *कुछ कर दरगुजर कुछ कर दरकिनार* यही होता है सच्ची मित्रता का आधार।। मान है मित्रता,और है मनुहार। स्नेह है मित्रता,और है सच्चा दुलार। नाता नहीं बेशक ये खून का, पर है मित्रता अपनेपन का सार।। छोटी छोटी बातों का मित्र कभी बुरा नहीं मानते। क्योंकि कैसा है मित्र उनका, ये बखूबी हैं जानते।। मित्रता जरूरी नहीं एक जैसे व्यक्तित्व के लोगों में ही हो, कान्हा और सुदामा की मित्रता इसका सटीक उदाहरण है। राम और सुग्रीव की मित्रता भी विचारणीय है।। हर भाव जिससे हम साझा कर सकें और मन यह ना सोचें कि यह बताने से मित्र क्या सोचेगा?? वही मित्र है।। बाज़ औकात, मित्र हमारे भविष्य के बारे में भी हम से बेहतर जान लेते हैं। सबसे पहली मित्र,सबसे प्यारी मित्र मां होती है,किसी भी सच्चे और गहरे नाते की पहली शर्त मित्र होना है।। मित्र मजाक ज़रूर करते हैं,परंतु कटाक

सकल पदार्थ हैं जग माहि, करमहीन नर पावत माहि।।,(thought by Sneh premchand)

सकल पदारथ हैं जग मांहि,कर्महीन नर पावत नाहि।। स--ब कुछ है इस जग में,कर्मों के चश्मे से कर लो दीदार। क--ल कभी नही आता जीवन में, आज अभी से कर्म करना करो स्वीकार। ल--गता सबको अच्छा इस जग में करना आराम है। प--र क्या मिलता है कर्महीनता से,अकर्मण्यता एक झूठा विश्राम है। दा--ता देना हमको ऐसी शक्ति, र--म जाए कर्म नस नस मे हमारी,हों हमको हिम्मत के दीदार। थ-कें न कभी,रुके न कभी,हो दाता के शुक्रगुजार। हैं--बुलंद हौंसले,फिर क्या डरना किसी भी आंधी से, ज--नम नही होता ज़िन्दगी में बार बार। ग--रिमा बनी रहती है कर्मठ लोगों की, मा--नासिक बल कर देता है उद्धार। हि--माल्य सी ताकत होती है कर्मठ लोगों में, क--भी हार के नहीं होते हैं दीदार। र--ब भी देता है साथ सदा उन लोगों का, म--रुधर में शीतल जल की आ जाती है फुहार। ही--न भावना नही रहती कर्मठ लोगों में, न--हीं असफलता के उन्हें होते दीदार। न--र,नारी लगते हैं सुंदर श्रम की चादर ओढ़े, र--हमत खुदा की सदैव उनको मिलती है उनको उपहार। पा--लेता है मंज़िल कर्म का राही, व--श में हो जाता है उसके संसार। त--प,तप सोना बनता है ज्यूँ कुंदन, ना--द कर्म के से गुंजित होता है मधुर व

बुआ भतीजी