है बधाई की मां सबसे अधिक हकदार।।
अपनी जान जोखिम में डाल कर,
हमें इस जग में आने वाली जननी का,हम भूल नहीं सकते उपकार।।
वो कब,क्या,कैसे,क्यूं,कितना, किन हालातों में सब करती है,इस सोच को हम दे भी नहीं पाते आकार।।
जन्मदिन के दिन, मां की गोद में छिपा कर आंचल,एक बार फिर बच्चा बन कर तो देखो ज़रा।
शीतल हो जाएगा सुलगता सा तन मन,नजर आएगा सिर्फ और सिर्फ हरा।।
फिर एक बार मनचाहे खाने की जिद्द तो करो मां से,
शायद वो कब से कर रही हो इंतज़ार।
फिर से एक बार मलिन हाथों को पौंछना उसके आंचल से,
तल्खियां नहीं मिलेगा बस प्यार ही प्यार।।
ममता की तो होती ही नहीं कोई लक्ष्मण रेखा,
मां में नजर आता है सारा संसार।।
करवाचौथ पर पत्नी का,पर जन्मदिन पर मां का होता है पहला अख्तियार।।
ज्यूं माटी से मटके को ठोंक पीठ कर
आकार देता है कुम्हार।
यूं ही पथ पथ पर कर पथ प्रदर्शन,
मां देती है जीवन संवार।।
मुझे तो मां से बेहतर नहीं आता नजर कोई भी शिल्पकार।।
स्नेह प्रेमचंद
Very touching and informative poem
ReplyDeleteSo true
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