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दुआओं का त्यौहार (thought on Bhai duj by Sneh premchand)

सदा मिले सफलता,सुख,शांति,समृद्धि और स्वास्थ्य,
यही कामना करें हर बहन आज के दिन ओ बीरा।
 देहरी पर आई है बांध पोटली सौगात प्रेम की,
दुआ उसकी पूरी कर देना रघु बीरा।।
सौहार्द और दुआओं से लबरेज़ है भाईदूज का पावन त्यौहार।
एक बात आती है समझ में,प्रेम ही हर रिश्ते का आधार।। 
नए रिश्तों के नए भंवर में बहना तो यदा कदा उलझ सी जाती है।
पर शायद ही होगी कोई भोर और सांझ ऐसी,जब याद भाई की उसे नहीं आती है।।
वर्तमान में अतीत के झोले से वो कुछ पल चुराने आती है।
हौले से समेट जेहन की अलमारी में,मधुर स्मृतियों का ताला लगाती है।।
ये उसकी निजी सम्पत्ति है कोई और नहीं होता उसका हकदार।
एक बात आती है समझ में,परिवार तो बस होता है परिवार।। 
न हो कोई आपाधापी जीवन में भाई के,
जीवन पथ, सरलता और सहजता का करे श्रृंगार।
जब तक सूरज चांद चमक रहे व्योम में,
तूं भी चमके दमके,यही दुआ हर बहना का उपहार।।
  
      स्नेह प्रेमचंद

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