भाई दूज तो बढ़िया है पर,
क्यों नहीं होता ये बहन दूज का पावन त्यौहार??
मां के बाद तो है ये सबसे करीबी नाता,
न ईर्ष्या, न द्वेष,न क्लेश न विकार।।
एक दूजे संग जो बीते हैं लम्हे,
होते हैं सुकून का अपार भंडार।
ऊर्जा आ जाती है बिन नयोत्ते ही,
उल्लास भी आ जाता है मन के द्वार।।
एक की खुशी दूजे की खुशी,
न कोई शक,न सुबा,न संशय न अहंकार।
कह देती हैं सब एक दूजे से,
खोल देती हैं मन के समस्त द्वार।।
बहुत कुछ साझा नहीं कर पाते संग भाइयों के,
पर बहन के नाते में तो है ही नहीं,
कोई भी हिचक की दीवार।।
हर समस्या का समाधान है बहन तो,
ऊर्जा उल्लास से भर देते हैं उसके दीदार।।
मुझे आज तलक ये नहीं आया समझ में,
क्यों नहीं होता बहन दूज का पावन त्यौहार??
बहन में तो साफ साफ अक्स नजर आता है मां का,बहन तो उलझे मन को
दे देती है सही आकार।।
मां से भी अधिक लंबा नाता है
संग बहन के,
प्रेम ही है इस नाते का आधार।
सुख दुख सान्झे, सानझे अहसास है,एक सी शब्दावली,एक सा ही अक्सर होता व्यवहार।।
एक सी कार्यशैली,एक ही चमन की डालियां,बेशक बाद में जुदा जुदा हो जाते हैं परिवार।
पर आटे में नमक सी मिल जाती हैं मिलते ही,अलग ही है बहन का बहन से प्यार।।
मुझे तो समझ नहीं आता क्यों नहीं होता बहन दूज का त्यौहार??
सखी सहेली भी हैं,मित्र भी हैं,
हैं वे तो पूरे ही वजूद की जानकार।
बहन से बेहतर तो हो ही नहीं सकता कोई भी सलाहकार।।
हमारे व्यक्तित्व को अपने अस्तित्व में ढालने वाली बहन भी होती है मां सी शिल्पकार।।
आओ करें एक अभिनव पहल,हों कृतज्ञ एक दूजे के लिए,दें एक दूजे को अधिक से अधिक प्यार।
बहन ही तो है जो ज़िन्दगी के हर मोड़ पर सुलझाती है उलझी पहेली,
हो सकती है बेहतरीन राजदार।।
मुझे तो समझ ही नहीं आता क्यों नहीं होता बहन दूज का पावन त्यौहार???
उल्लास की अंगीठी में अपनत्व का अलाव हैं बहनें।
स्नेह के मंडप में सौहार्द का अनुष्ठान हैं बहनें।।
हर्ष की नाव में सहजता के चप्पू हैं बहनें।।
आशा के दीप में जिजीविषा की बाती हैं बहनें।।
संयम के गगन में सहिष्णुता की उड़ान हैं बहनें।।
अल्फाजों से अगर अधिक दोस्ती होती,तो सही से कर पाती इज़हार।
दोस्ती शब्दों से अधिक भावों से मेरी,
खुद ही समझ लेना बहन का बहन से प्यार।।
मुझे तो समझ में नहीं आता,
क्यों नहीं होता बहन दूज का पावन त्यौहार???
स्नेह प्रेमचंद
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