मां तेरे बारे में क्या लिखूं,
तूने ही मुझे लिख डाला।
सोच सोच होती है हैरानी,
सीमित उपलब्ध संसाधनों में भी
कितने प्रेम से कैसे हमको होगा पाला।।
किस माटी से तुझे बनाया खुदा ने,
खुद बना कर भी हैरान हो गया
होगा ईश्वर,
देख तेरा व्यक्तित्व निराला।।
न कोई शक,संशय,न अवसाद,न विषाद।
जाने कितनी ही बार तूं आती है याद।।
तेरी याद के हर झोंके ने,
जैसे अस्तित्व मेरा हो हिला डाला।
मां तेरे बारे में क्या लिखूं,
तूने तो मुझे ही लिख डाला।।
मां अल्फाजों से गर मेरी होती दोस्ती,
तो सही से कर पाती इज़हार।
दोस्ती तो मेरी एहसासों से है,
परिभाषित नहीं कर पाती
तेरी ममता का सार।।
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