जाड़े में गुनगुनी धूप सी,गरमी में हो जैसे शीतल फुहार।
अल्फाजों से नहीं, भावों से है दोस्ताना मेरा,
समझा नहीं सकती कितना है प्यार।।
मैं भाव लिखती हूं,तुम शब्द पढ़ते हो,जुड़ नहीं पाते दिल के दिल से तार।।।
कोई ज़रूरी तो नहीं, जग में,मिले, हर अनुभूति को इज़हार।।
कोई कांटा भी न चुभे तुझे,यही दुआ है सच्चा उपहार।।
प्रेम देना जानता है,मोह लेना,इस अंतर को कर लेना स्वीकार।।
हमें प्रेम है तुझ से,मोह नहीं,
यूं ही रहना मेरी ज़िन्दगी में शुमार।।
बेशक मुलाकात नहीं होती अक्सर,
पर जेहन मे रहता सदा तेरा ही खुमार।।
एक ही प्रेम वृक्ष की हैं हम चार चार डाली।
बेशक अब आंगन बदल गए हों हमारे,पर एक ही बागबां द्वारा हम गई थी पाली।।
कितने ही संज्ञा,सर्वनाम,विशेषण साझा किए हमने,सांझी अनुभूतियां,सांझे इज़हार।।
छोटी सी लाडो हो गई बड़ी,पता ही न चला,कब बन गई इतनी ज़िम्मेदार।।
कोई सरहद नहीं होती कभी प्रेम की,
समझना सदा पूरा अधिकार।।
कह दिया,बस कह दिया,
कभी कोई परेशानी न दे दस्तक तेरे द्वार।।
Comments
Post a Comment