इस बार दिवाली पर मिठाई बेशक ना बांटे,
पर बांटे सर्वत्र भरपूर मिठास।
दीप तो जलाएं बेशक पर दिल जलाने का कभी न करें कोई प्रयास।।
इस बार दीवाली पर हर चौखट पर उम्मीदों का दीप जलाएं,बुझ गए हैं चिराग जिन घरों के,उन्हें अपनेपन का करवाएं अहसास।।
इस बार दीवाली पर खुशियों को फुलझडियां जलाएं,
लौ पड़ गई है फीकी जिन दीपों की,
उन दीपों में फिर घी डाल कर,
पुनर्जन्म का करवाएं अहसास।।
इस बार दीवाली पर मुलाकातें बेशक ना हों अपने प्रिय जनों से,
पर अपनेपन का पनपता रहे मधुर एहसास ।।
इस बार दीवाली पर बूढ़े मां बाप की लाठी बन जाते हैं,अरसे से जो नहीं बैठे संग उनके किसी दीवाली पर,इस बार उनकी चादर में बन फिर से छोटे सिमट जाते हैं।।
इस बार दीवाली पर बूढ़ी मां से जिद करके पसंद की भाजी बनवाते हैं,अपने मलिन हाथों को पौंछ उसके आंचल से चित चैन सा पाते हैं।।
इस बार दीवाली पर बचपन की यादों पर पड़ी धूलि को हटाते हैं,फिर सुनते हैं मां बाप से वही पुराने किस्से,उन्हें बहुत ही खास होने का अहसास करवाते हैं।।
इस बार दिवाली पर अपने शौक एक तरफ रख,
किसी की जरूरतें पूरा करने का करें सुखद आभास।।
सुख लेने में नहीं देने में मिलता है,
सबका साथ सबका विकास।।
इस बार दीवाली पर रूठे हुओं को मनाने की पहल करने का करें प्रयास।।
अहंकार की तोड़ दीवारें, हटा दूरियां,आएं हम एक दूजे के पास।।
इस बार दीवाली पर सब एक नया पौधा लगा कर संवारे धरा को,न जलाएं पटाखे, बचें वायु और ध्वनि प्रदूषण से, पर्यावरण का न करें ह्रास।।
इस बार दीवाली पर एक ऐसी रंगोली बनाएं जो रंगहीन लोगों के जीवन में भी आशा के रंग भर चित में भर दे हर्ष उल्लास।।
इस बार दीवाली पर---------
इस बार दीवाली पर एक दूजे के घर जाकर हम जो देते थे उपहार,
उन्ही उपहारों को ले जाएं किसी अनाथाश्रम में,वे कर लेंगे बड़े प्रेम से उन्हें स्वीकार।।
वे खुश भी होंगे,दुआएं भी देंगे, असली बैंक अकाउंट का कर लो विकास।।
इस बार दीवाली पर मन के रावण का कर दहन,मन के राम को कन्न कन्न में देवें आवास।।
इस बार दीवाली पर समझें,सब बदल जाता है जीवन में,कठपुतली है इंसा,कोई शक्ति नहीं है उसके पास।।
वक्त बदल जाए गर इंसा का, धन दौलत भी नहीं बन सकती है खास।।
महाशक्ति भी पड़ जाती है बौनी,
निर्मल चित से बस करो अरदास।।
इस बार दीवाली पर हर कोई किसी एक निर्बल को सबल बनाने का करें प्रयास।।
स्नेह प्रेमचंद
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