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है क्या कोई??? (Thought on mother by Sneh Premchand)

है क्या कोई मां से अधिक मधुर अहसास???
मुझे तो लगता नहीं,हो सकता है इससे कुछ खास।।
चित चिंता को चित चैन में,
 बदल देती है मां।
जीवन के इस मरुधर में,
सबसे शीतल छांव है मां।।
हर कब, कैसे, क्यों, कहां,कितना
का जवाब बन जाती है मां।।
मां ही तो है हर पर्व,उत्सव और उलास।
किस माटी से बना दिया ईश्वर ने मां को,
दे दिया धीरज, हौंसला,ममता और अहसास।।
करो या न करो इस बात पर विश्वास।
मां है ममता,सुरक्षा,समर्पण,कर्म और विश्वास।।
है क्या कोई मां से अधिक मधुर अहसास???
हर संज्ञा,सर्वनाम,विशेषण का बोध कराने वाली,
संघर्षों की भाजी में जिजीविषा का छौंक लगाने वाली,
प्रयासों के मंडप में सफलता का अनुष्ठान बन जाने वाली,
कर्तव्य के तंदूर में ज़िम्मेदारियों की रोटी
सेकने वाली, 
हमारे चेतन,अचेतन में बस जाने वाली,
हमारे आचार,विचार,व्यवहार में अपनी छाप छोड़ने वाली,
ज़िन्दगी के हर मोड़ पर साथ निभाने वाली,
हो कोई भी समस्या,फट से समाधान बन जाने वाली,
शिक्षा के भाल पर संस्कार का टीका लगाने वाली,
कर्म की सड़क पर सफलता का पुल बनाने वाली,
हो कैसी भी परिस्थिति,पर अपनी मनस्थिति से सब कुछ बदलने वाली,
 ज़िन्दगी के अग्निपथ पर, ठंडी सी जलधारा बनने वाली,
शायद नहीं,निश्चित रूप से मां का साया है सबसे अनमोल,सुखद,अदभुत आभास।
सच में कहीं नहीं है मां से मधुर कोई भी अहसास।।
            स्नेह प्रेमचंद

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