वह जाने क्या क्या सिखा गई???
कथनी से नहीं करनी से सब बता गई।
मां सा पुर्सान ए हाल कोई हो ही नहीं सकता,
अपने अस्तित्व के अक्स मे ये दिखा गई।
क्या लिखूं उसके बारे में,
उसने तो मुझे ही लिख डाला,
अपने कर्म की लेखनी से भाग्य हमारा,अनोखा लिखा गई।।
मां बन कर मां मैंने है जाना,
कितना मुश्किल है दर्द छिपा,
ऊपर से मुस्काना,अपनी सदाबहार मुस्कान से हमें भी मुस्कुराना सिखा गई।।
मां से बेहतर कोई शिक्षक हो ही नहीं सकता,
शिक्षा पर सुसंस्कारों का टीका लगा गई।।
वह जाने क्या क्या सिखा गई।
हैरान सी हो जाती हूं जब लगती हूं सोचने,
वह सोच कर्म परिणाम की अदभुत त्रिवेणी बहा गई।।
वह कहीं नहीं गई,हमारे एहसासों में रहेगी ताउम्र ज़िंदा,
एहसासों को ज़िंदा रखना सिखा गई।।
जाने कितने ही ख्वाबों को,
समझौतों की बलि चढ़ा गई।
किस माटी से रचा था भगवान ने उसको,
सोच पर मेरी प्रश्न चिन्ह सा लगा गई।।
स्नेह प्रेमचंद
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