आता है आंनद मुझे अब,
साहित्य के गलियारों में,
रूह तृप्त कर देती है लेखनी,
क्या लेने जाऊं बाजारों में??????
भावों से हो गई है दोस्ती,
अल्फाजों से भी हो गया है याराना।
सुर,सरगम,संगीत से, मधुर नहीं
कोई भी तराना।।
साहित्य,,संगीत,कला,
भोजन हैं रूह के,
तृप्ति सी हो जाती है इन संस्कारों में।
कभी नहीं खाती तनहाई,
खो जाती हूं अक्सर विचारों में।।
आता है आंनद मुझे,
अब साहित्य के गलियारों में।।।
रूह तृप्त कर देती है लेखनी,
क्या लेने जाऊं बाजारों में????
खुशी नहीं मिलती बाहर से,
खुशी है भीतर का अहसास।
कोई तो झोंपड़ी में भी खुश है,
किसी को महल भी नहीं आते रास।।
मिलती है सच्ची खुशी मुझे तो,
काव्य के उजियारों में।
मलिन मनों से हट जाते हैं धुंध कुहासे,
चमक सी आ जाती है विचारों में।।
रूह तृप्त कर देती है लेखनी,
क्या लेने जाऊं बाजारों में??????
जब भी जेहन में कोई भी विचार
लेता है जन्म,
अल्फ़ाज़ खुद ही साथ निभाने का निभा देते हैं धर्म,
आता है आंनद मुझे अब,
विचार,अल्फ़ाज़ और इज़हार की त्रिवेणी बहाने में,
रूह तृप्त कर देती है लेखनी,
क्या लेने जाऊं बाजारों में,????
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