प्रेम,सहजता,भरोसा और विश्वास।
यही बनाती हैं जीवन को ख़ास।।
इन सब से ओत प्रोत हो गर जीवनसाथी,
हर दिन उत्सव है बिन प्रयास।।
किसी ख़ास दिन का मोहताज नही होता जश्न फिर,
पल पल जश्न का होता है आगाज़।।
माँ बाप और जीवनसाथी,
सजता है इनसे जीवन का साज।।
रहे सदा सजा ये साज प्रीतम,
बस आती है दिल से यही आवाज़।।
इतना तो यकीन है मुझे,
हूं पंख मैं,तो तुम हो परवाज़।।
हर चित चिंता हो जाती है दूर साथी
मैं कंठ तो तुम आवाज़।।
हमसफ़र को सौंप कर बेफिक्र से
हो जाते हैं मां बाबुल भी,
ये तो जैसे बन ही गया है रिवाज़।।
प्रेम दीप मे प्रेम ज्योत से जलते रहना
इसी परम्परा का करना आगाज़।।
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