[ बसंतपंचमी आयी रे ]
ओढ़ पीली चुनरिया,पहन हरा घाघरा, बसंतपंचमी आयी रे।
चाहे कहो श्री पंचमी,ऋषि पंचमी,बसंतपंचमी,सबके मन को भाई रे।।
बागों में फूलों पर आ गयी बहार,
खिली जौ,बालियां,आमों पर बौंर बेशुमार।
वसुंधरा अपने पूरे यौवन पर,
अम्बर भी भरा पतंगों से लागे खुशगवार।।
खिल रहा कण कण प्रकृति का,
ऋतुराज बसंत की लागे जैसे सगाई रे।
ओढ़ पीली चुनरिया,पहन हरा घाघरा
बसंतपंचमी आयी रे।।
उमंग,जोश,प्रेम,उत्सव,उल्लास
पांचों भावों से बना पर्व ये अति खास।
नव जीवन,नवचेतना के भाव,
ये झोली में भर कर लायी रे।
ओढ़ पीली चुनरिया,
पहन हरा घाघरा,
बसंतपंचमी आयी रे।।
माँ सरस्वती के जन्मोत्सव के रूप में
भी इसे मनाया जाता है।
आज ही के दिन ब्रह्मा जी के द्वारा
हुआ था माँ सरस्वती का प्रकाट्य,
दर्शन संगीत की देवी का सब को भाता है।।
होती है आज माँ शारदा की आराधना,
है जो मेधा,कला,ज्ञान का भंडार।
खिल जाता है कण कण प्रकृति का
नई उमंग,नई चेतना का होता संचार।।
पीली पीली हुई धरा,
स्वर्णिम आभा से सुन्दर हो आयी रे।
ओढ़ पीली चुनरिया,पहन हरा घाघरा
बसंतपंचमी आयी रे।।
पवन में सरसराहट,
जलधारा में कोलाहल,
कण्ठ में आवाज़
कोयल में कूक
आज ही के दिन थी आयी रे।
कवि,लेखक,गायक,वादक
या हो कोई संगीतकार,नृत्यकार या नाटककार
सब करते आज अपने वाद्यों की पूजा
मन में माँ सरस्वती को धार।।
परम् चेतना के इस महापर्व पर,
प्रकृति मनमोहक हो आयी रे।
मानव,पशु,पक्षी सब होते उल्लसित
स्पंदन,चेतना,खुशी ये लायी रे।।
बिद्या,बुद्धि,संगीत की प्रदाता,
यह कला की देवी सरस्वती के,
जन्मोत्सव पर पूरे ही ब्रह्मांड ने
जैसे खुशियां मनाई रे।
ओढ़ पीली चुनरिया,
पहन हर घाघरा,
बसंतपंचमी आयी रे।।
स्नेह प्रेमचंद
एल आई सी हिसार 1
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