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बीत गए बरस चार (थॉट बाय स्नेह प्रेमचंद)

समय की कोख से जन्म लेती हैं घटनाएं
कुछ मिलते हैं कुछ बिछड़ते है
पर एक दिन अलग हो जाती हैं राहें
सबका अपना अपना सफर है
सब को पूरा कर के जाना है
रिश्तों के ताने बाने में जो उलझा है इंसा
ये सब जीवन जीने के बहाने है
अपने अपने कर्तव्य जन्मभूमि पर हम को निभाने हैं
मोह माया के बंधन हैं बहुत ही गहरे
धीरे धीरे ये खुद से छुड़ाने हैं
बिछड़ रहें हैं सब बारी बारी
कुछ जाने हैं कुछ अनजाने हैं
वो जो आज गये हैं हमे छोड़ कर
हम बचपन से उनके दीवाने हैं
मिले शांति उनकी दिवंगत आत्मा को
यही श्रद्धांजलि ही हमारे तराने हैं
माँ जैसी होती है मौसी
है सच्चाई,नही झूठे फ़साने हैं
पहले एक फिर दो अब हो गए
हैं धीरे धीरे पूरे तीन साल
जाने वाले तो चले जाते हैं
अपनो के हिया में उठता है बवाल।
आज दे रहे श्रधांजलि उन्हें
मिले शांति उनकी दिवंगत आत्मा को
मौसी थी हमारी बड़ी कमाल।।
ये क्या देखते देखते ही तीन से
हो गए चार साल।।
समय तो चलता रहता है अपनी गति से,
जिंदगी में सदा ही नहीं मिलता कोई पुरसान ए हाल।।
जिंदगी चलती रहती है,किरदार बदल जाते हैं,हो बेहतर न हो मन में कोई मलाल।।

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