मैने भगवान को तो नहीं देखा,
पर मां को भगवान के रूप में देखा है।
मां कुदरत की सर्वोत्तम कृति,
सच में ही मां जीवन रेखा है।।
तन हैं हम तो, रूह है मां,
दिल हैं हम तो, धड़कन है मां,
सुर हैं हम तो, सरगम है मां,
नयन हैं हम तो, चितवन है मां,
चेतना हैं हम तो, स्पंदन है मां,
सफ़र हैं हम तो, मंज़िल है मां,
एक अल्फ़ाज़ हैं हम तो,
पूरी की पूरी किताब है मां,
एक संख्या हैं हम तो,
पूरा का पूरा हिसाब है मां,
एक कतरा हैं हम तो,पूरा सागर है मां।।
प्यास हैं हम तो,पूरी गागर है मां।।।
मां को परिभाषित करना होता
गर इतना ही आसान।
तो सदियों से इसी कर्म में,
न लगा होता लेखन का जहान।।
न कोई था,न कोई है,न कोई होगा
मां से बढ़ कर कभी महान।।
एक अक्षर के छोटे से शब्द में
सिमटा हुआ है पूरा जहान।।
जब भी चलती है लेखनी मां पर,
चलती है सतत,अविलंब और अविराम।।
मां कहीं नहीं जाती,
होती है ताउम्र ज़िंदा हमारे जेहन में,
मां कुदरत का है, हमे, अनमोल वरदान।।
स्नेह प्रेमचन्द
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