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आए हैं गर इस जग में Thought by Sneh premchand

जो जीवन हम नहीं दे सकते,
उसे लेने का भी नहीं,
 हमें कोई अधिकार।
बनो आज अभी से शाखा हारी,
छोड़ो अब ये मांसाहार।।

आए हैं गर इस जग में तो,
सीखें, जीवों से करना प्यार।।
खरामा खरामा ये भी बन जाते हैं,
हिस्सा ए ज़िन्दगी या कह लो परिवार।।

रूह ए सुकून मिलता है,
दर्द लेकर तो देखो उधार।
सब उजला सुंदर हो जाता है,
जब ये बेजुबान करते हैं
 हमसे सच्चा प्यार।।
इन्हें भी हमारा प्रेम और साथ चाहिए,
नहीं चाहिए कभी भी निर्मम कटार।।
मात्र जिह्वा के स्वाद की खातिर,
क्यों जीना करते हो इनका दुश्वार??

कयामत के रोज़,क्या दोगे जवाब तुम,
झुकी नज़रें,ख़ामोश लब,यही होगा
करे कर्म का बंधु उपहार।।
का वर्षा जब कृषि सुखाने,
समय भी समय नहीं देता बारम्बार।।

आओ आज लें प्रण हम,
नहीं अपनी थाली का भोजन कभी भी
इन्हें बनाएंगे।
मलिन मनों से हट जाएंगे सब धुंध कुहासे,सब उजले उजले ही नजर आएंगे।।

ऐसा जब हो जाएगा,
आ जाएगा समझ सबको,
प्रेम ही हर रिश्ते का आधार।।
आएं हैं गर इस जग में,
सीखें जीवों से करना प्यार।।।
            स्नेह प्रेमचंद

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