मासूमियत ममता के आंचल में सोती थी
रूठे को मनाना आता था
सहजता का दामन भाता था
माया के दलदल में न गोता खाया था
सब अपने न ,कोई पराया था
झगड़े तब भी होते थे
पर अपनापन न खोते थे
रिश्तों की उद्ध डन को सी लेती थी माँ
समन्वय और समझौते से हर रिश्ता माँ ने संवारा था
वो बचपन कितना प्यारा थाकोई चिंता चित्त में न होती थी
मासूमियत ममता के आंचल में सोती थी
रूठे को मनाना आता था
सहजता का दामन भाता था
माया के दलदल में न गोता खाया था
सब अपने न ,कोई पराया था
झगड़े तब भी होते थे
पर अपनापन न खोते थे
रिश्तों की उद्ध डन को सी लेती थी माँ
समन्वय और समझौते से हर रिश्ता माँ ने संवारा था
वो बचपन कितना प्यारा थाकोई चिंता चित्त में न होती थी
मासूमियत ममता के आंचल में सोती थी
रूठे को मनाना आता था
सहजता का दामन भाता था
माया के दलदल में न गोता खाया था
सब अपने न ,कोई पराया था
झगड़े तब भी होते थे
पर अपनापन न खोते थे
रिश्तों की उद्ध डन को सी लेती थी माँ
समन्वय और समझौते से हर रिश्ता माँ ने संवारा था
वो बचपन कितना प्यारा था
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