शहीदे आज़म भगत सिंह,राजगुरु और सुखदेव को शत शत नमन और भावभीनी श्रद्धांजलि है हमारी।
क्यों नही फटा धरा का हिया,क्यों नही अनन्त गगन डोला उस दिन,ये जिज्ञासा है हमारी।।
क्यों मानवता हुई दानवता उस दिन,क्यों खोए हमने लाल हमारे???
युग आएंगे,युग जाएंगे,
पर इनको भूल न पाएंगे सारे।।
फिज़ां में आज भी महक है इनके शौर्य की,
फिरंगी जीत कर भी थे इनसे हारे।
एक कशिश,एक मलाल सा रहता है हिवड़े में,जब जब हमने ये भाव विचारे।।
रण धीरों की है ये पावन धरा,लाख लाख नमन उनको,
जो अमर शहीद हंसते हंसते हो गए।
भारत माता पर आए न आंच कोई,
खुद चिरनिंद्रा में सो गए।।
एक हलचल,एक खलबली सी तब से है दिल में हमारे,
वीर शेरों ने कर ली मौत की सवारी।
नस नस में लहू हो जाता गर्म है,
नम हों जाती हैं आंखें सारी।।
इन तीनों को भावभीनी श्रद्धांजलि है हमारी।।
रंग चोला बसन्ती,हो गए हंसते हंसते,तीनो कुर्बान।
जब तक सूरज चाँद रहेगा,याद करेगा इनको जहान।
शौर्य और बलिदान की अमर गाथा मिल कर तीनों रचा गए।
सिहरन सी होती है जिक्र के ही जिनके,
आजादी का बिगुल बजा गए।।
धन्य हैं ये तीनों लाल मां भारती के,
जान गई दुनिया सारी।
शत शत नमन और वंदन तीनों को,
आजन्म रहेंगे हम इनके आभारी।।
स्नेह प्रेमचंद
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