अपने ही जब देते हैं जख्म,तब मरहम कहीं नही मिलता
बागबान ही गर उजाड़े चमन को,फिर एक भी फूल नही खिलता
तन के घाव समयानुसार भर जाते है,पर बातों का घाव कभी नही भरता
सोच कर बोलो,बोल कर मत सोचो,
मीठा बोल तो दुखी मन के दुःख को कम करता
चार दिनों की इस ज़िन्दगानी में
क्यों इंसा तेरा मेरा करता
सब अपने हैं,हम सब के हैं,क्यों इस सोच से औरों के दुःख नही हरता।।
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