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कौन होते हैं टीचर( थॉट बाय स्नेह प्रेमचंद)

टीचर का काम मात्र शिक्षित करना ही नहीं है,शिक्षक का काम छात्र मन में जिज्ञासा का पैदा करना भी है।अधिक आई क्यू वाले छात्रों को प्रथम स्थान पर लाने से,शिक्षक की जिम्मेदारी खत्म नहीं होती,उसकी जिम्मेदारी तो कक्षा में सबसे पिछड़े हुए छात्रों को मुख्य धारा से जोड़ने तक रहती है।सबको साथ लेकर जो चले, वही सही मायने में शिक्षक है।सबसे बड़ा काम है शिक्षक का, बाल मन में जिम्मेदारी और नैतिक भावना को जन्म देना।अक्षर ज्ञान करवा कर,फार्मूले याद करवा के,परीक्षा में अच्छे अंक आने मात्र से एक शिक्षक के कर्तव्य की इति श्री नहीं होती, सर्वप्रथम तो बच्चों के हृदय में, सांझा करने की प्रवृत्ति का विकास करे,उसके संशयों का बिना किसी भय को पैदा कर निवारण करे,
 सामूहिकता पर बल दे, पढ़ाने के तरीके को ज्ञानवर्धक बनाने के साथ-साथ रुचि वर्धक भी बनाए।अपने ज्ञान की भी सतत बढ़ोतरी करे,सहजता के अंकुर प्रस्फुटित करे। शिक्षा के भाल पर जब तक सुसंस्कारों का टीका नहीं लगता,तब तक उस शिक्षा का कोई औचित्य नहीं।उच्च शिक्षा प्राप्त कर,विदेशों में कार्यरत बच्चों के माता-पिता जब अपने ही वतन में वृद्धाश्रम की शरण लेते हैं तब उस शिक्षा का कोई अर्थ नहीं रह जाता। माना धन उपार्जन जिंदगी की बहुत बड़ी जरूरत है परंतु अपनों की उपेक्षा करके अधिक धन कमाना कहां तक तर्कसंगत है?,अच्छा शिक्षक वह है,जो बच्चों में राष्ट्रप्रेम,मातृभाषा से प्रेम,मातृभूमि से प्रेम और अपने मात-पिता और स्वजनों से भी प्रेम करना सिखा दे. प्रेम की कोई सरहद नहीं, कोई धर्म नहीं, कोई सीमा नहीं,प्रेम तो पराए को भी अपना बना सकता है. यह काम अगर एक शिक्षक करता है तो बाल मन पर उसका अधिक समय तक असर रहता है ।बच्चे की रुचि जानना भी एक शिक्षक का दायित्व है। रुचि अनुसार ही उसके कैरियर को एक सांचे में ढाल कर बच्चे का समुचित विकास करना भी,
 एक अच्छे शिक्षक का परम कर्तव्य है। एक शिक्षक क्या कमाता है, यह इतना महत्वपूर्ण नहीं जितना कि एक शिक्षक कितने अच्छे नागरिक का सृजन करता है।शिक्षक को शास्त्रों में ईश्वर के समकक्ष रखा गया है।
 एक दोहा भी है 

*गुरु गोविंद दोऊ खड़े काके लागू पाय बलिहारी गुरु आपने जिन गोविंद दियो मिलाय*

 भावार्थ यह है शिक्षक मात्र एक कर्मचारी नहीं,एक भाग्य विधाता है सृजन करता है,राष्ट्र निर्माता है, इसी सोच का विहंगम विस्तार करना अत्यंत आवश्यक है।एक शिक्षक क्या पहन कर जाता है यह इतना आवश्यक नहीं है जितना एक शिक्षक बच्चों को क्या सिखाता है महत्वपूर्ण है।।
        स्नेह प्रेमचंद

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