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हर सपने के होते थे पंख(थॉट बाय स्नेह प्रेमचंद)

हर सपने के होते थे पंख,
और पूरा हो जाता था हर सपना।
हर खिलौने के लिए होती थी इच्छा,
और हर खिलौना हो जाता था अपना।।

ये सब बाबुल के जग में होने से होता है,
चित में चिंता का नही होता वास।
शायद यही कारण है ,
तभी बाबुल बेटी का रिश्ता है खास।।

मा तो कह देती है  मन की,
पर बाबुल नही करता इज़हार।
ऊपर से कठोर,नरम भीतर से,
यही होता है बाबुल का प्यार।।

कितना कुछ क्षमता से अधिक
 करते हैं मा बाप,
ये खुद मा बाप बन कर हम करते हैं स्वीकार।।
सौ बात की एक बात है,
प्रेम ही है हर रिश्ते का आधार।।

मात पिता कहीं नहीं जाते,
ताउम्र रहते हैं साथ हमारे।
अहसासों में रहते हैं खिले खिले से,
याद आते हैं हर सांझ सकारे।।

जीवन का परिचय अनुभूतियों से करानेवाले,
बेशक तन छोड़ तो एक दिन चले जाते हैं।
पर जिंदगी की किताब के मुख्य पृष्ठ पर सदा के लिए अंकित हो जाते हैं।।

थाम कर ऊंगली जिनकी होते बड़े
होते हैं हम,
वे ही तो हर संज्ञा,सर्वनाम,विशेषण से
हमारा परिचय करवाते हैं।।
सब मिल सकता है जग में,
पर मात पिता नहीं मिलते बारंबार।।

धरा पर ईश्वर का पर्याय होते हैं वे,
नहीं अल्फाजों में वो ताकत,
जो प्रकट कर पाएं हम आभार।।
कभी मातृ और पितृ ऋण से U ऋण नहीं हो सकते हम,
कर लो इस सत्य को स्वीकार।।
वो क्या,कब,कैसे,कितना करते हैं हमारे लिए,
है सबकी समझ से यह सत्य बाहर।।
फिर जब आती है बारी हमारी,
क्यों सो जाती हैं जिम्मेदारी
और जागृत हो जाते हैं अधिकार???
भावों से है याराना मेरा,शब्दों से नहीं,
वरना बता देती मात पिता के प्रेम का सार।
सागर से भी अधिक है उनके प्रेम की गहराई,
अति सुखद होते हैं उनके दीदार।।

बच्चे ही होते हैं मात पिता का सारा संसार।
पर बच्चों की दुनिया में क्यों खो जाते हैं वे अक्सर, 
वे तो ताउम्र करते हैं स्नेह और प्रेम की बौछार।।
उपलब्ध सीमित संसाधनों में भी करते हैं वे उत्तम से उत्तम,
सबसे बड़ी प्रॉपर्टी तो होती हैं उनके दिए हुए अनमोल संस्कार।।
खामियां तो नजर आती हैं हमको,
पर खूबियां भी होती हैं उनमें बेशुमार।।
जिजीविषा रहती है चेतन उनके होने से,
शत शत नमन पा आज आपको बारंबार।।
    स्नेह प्रेमचंद

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