कर जोड़ हम कर रहे,
परमपिता से यह अरदास।
मिले शांति पा की दिवंगत आत्मा को,
है प्रार्थना ही हमारा प्रयास।।
शत शत नमन और भावभीनी श्रद्धांजलि पा को,
वो नही हैं, हो ही नही पाता अहसास।
एक ही नाम था,एक ही काम था,
कितना सुखद था उनके होने का आभास।।
दस बरस बीत गए,
उनको हमसे बिछड़े हुए
कल की ही तो बात लगती है,
आते है याद कभी हँसते हुए,
कभी बिगड़े हुए।।
जो बीत गया है वो दौर न आएगा,
इस दिल के माँ बाप के स्थान पर कोई और न आएगा।।
समय पंख लग कर उड़ गया,हम लगाते ही रह गए कयास,
झटका सा लगता है सोच कर ,पापा नही हैं हमारे पास।।
इस दिवंगत आत्मा को मिले शांति,
आज उनके जन्मदिन का है यही उपहार।
कितने अच्छे थे वो दिल के,
बेशक थोड़ा कम करते थे इज़हार।।
सब्ज़ी में नमक जैसे,मिठाई में मिठास जैसे माँ बाप का होता है प्यार।
जब होते हैं तो सब सहज सामान्य सा लगता है, नही होते तब लगता है क्या अनमोल खो दिया,करते हैं सही में स्वीकार।।
मात पिता इतने दिखते हैं घर में कि,
बाज़ औकात नजर ही हमे नहीं आते।
पर जब चले जाते हैं वे जग छोड़ कर,
उनकी महता को हम हैं समझ पाते।।
सहजता चुरा लेती है दामन चित से,
धुआं धुआं से मन में यादों के बादल गहराते।।
एक युग की समाप्ति होती है जग से पिता के जाने के बाद।
उन्होंने क्या किया,क्या नहीं किया,
समझते हैं हम खुद पिता बन जाने के बाद।।
आज जन्मदिन पर उनके,सहसा ही आ गई है याद।।।
प्रेम वृक्ष के फूल,पत्ते, कली,कलियां कोंपले हैं कोने कोने में आबाद।।
आपका नाम भी लिया,काम भी लिया,
जीया जीवन अपना अपने ही तरीके से,कौन क्या कहता है,क्या करता है,
नहीं था इससे कोई भी सरोकार।
वो लहुसन की चटनी,वो बाजरे की खिचड़ी,वो हाला का प्याला,वो ताशों की बाजी,वो सीप की बाजी, वो पीसकोट में खुशी से तीन की दाल तीन की भुजिया करना,वो खुशी में बच्चे सा मुस्काना,वो गुस्से में होठ लटकाना,
सब जैसे आज तरोताजा हो आया है।
सौ बातों की एक बात है,
बड़ा शीतल होता बाबुल का साया है।।
दिल की कलम से
स्नेह प्रेमचंद
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