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लोकतंत्र की मजबूत सी रीढ़ थे (थॉट बाय स्नेह प्रेमचंद)

  लोकतंत्र की मजबूत सी रीढ़ थे,
 निभाया बेहतरीन अपना हर किरदार।
 किस किस उपाधि से नवाजे
 इस मसीहा को,
थे अथाह गुणों का अनंत भंडार।।
130वीं जयंती है आज इनकी,
फर्श से अर्श तक के सफर का समझना होगा सार।।

 महान अर्थशास्त्री, राजनीतिक विचारक समाज सुधारक, स्वतंत्र भारत के प्रथम कानून मंत्री,
 भारतीय संविधान के प्रारूप कार।। लोकतंत्र की मजबूती रीढ़ थे,
निभाया बेहतरीन अपना हर किरदार।।
 
हर शब्द पड़ जाता है छोटा,
 जब करने लगो इन का बखान।
कभी-कभी ही लेते हैं जन्म बाबा साहब से पुरोधा महान।।

 चैंपियन ऑफ सोशल जस्टिस, नारी शक्ति के लिए संवेदनशील और ज्ञान का अथाह भंडार।
 किस किस उपाधि से नवाजे इस मसीहा को,
 भारतीय संविधान के थे प्रारूप कार।। 
बाबा एक पर काम अनेक,
एक व्यक्तित्व पर अनेक किरदार। जनकल्याण ही सोच था उनकी,
 जन-जन है उनका शुक्रगुजार।।
 लोकतंत्र की मजबूती रीढ़ थे,
निभाया बेहतरीन अपना हर किरदार।। 
भारत रत्न,बौद्धित्सव,पीड़ित जनों के मसीहा और भारतीय संविधान के शिल्पकार ।
हम सब ऋणी हैं आपके कर्तव्य कर्मों के, नहीं अल्फाजों में वह ताकत जो प्रकट कर सके आभार।।
 किस-कस उपाधि से नवाजे आपको, आप तो थे अथाह गुणों का अनंत भंडार।।
 विश्व का ज्ञानदीप, सिंबल ऑफ नॉलेज, आधुनिक राष्ट्र निर्माता,
पूरा वतन ही तो था उनका परिवार।

 आडंबर रहित थी जीवन शैली उनकी, करते थे चरितार्थ सादा जीवन उच्च विचार।।
 लोकतंत्र की मजबूत रीढ़ थे,
 निभाया बेहतरीन अपना हर किरदार। बिखरे नहीं, वे निखरे विषम आर्थिक परिस्थितियों में भी,
 सही होगा कहना उन्हें *कोहिनूर*
 उपलब्ध सीमित संसाधनों में भी छुआ बुलंदियों को,
 बाबासाहेब ने सच्चे देशभक्त का निभाया दस्तूर।।

रुके नहीं, थके नहीं,चलते रहे,करते रहे, जाने कितने ही डूबते हुए को दिया तार।
 बाबा एक पर कृतित्व अनेक, 
एक व्यक्तित्व पर अनेक किरदार।। 
लोकतंत्र की सच्ची रीढ़ थे,
निभाया बेहतरीन अपना हर किरदार।। 

जाति, मजहब, रंग, प्रांत, देश, विश्व 
सबसे ऊपर मानवता का नाता।
 यही सिखाया बाबासाहेब ने,
 क्यों यह हमें समझ में नहीं आता??

अहम से वयम की ओर चले सदा वे,
 सच में ही थे कोई अवतार।।
कामगार वर्ग हितों की रक्षा हेतु, लागू कर बीमा स्कीम, उनका जीवन दिया सवार।
 किस किस उपाधि से नवाजे उनको,
थे अथाह गुणों का अनंत भंडार।।

हर 5 वर्ष में वित्त आयोग की व्यवस्था भी देन है उनकी,
 विहंगम सोच,विहंगम कार्य, विहंगम ही परिणामों का सार।।
 व्यक्ति नहीं विचार हैं आप,
 कहां-कहां नहीं कर दिया सुधार।।
 क्या-क्या ना कर गए बाबा साहब 
कैसे भूले उनके उपकार???
 सबका साथ हो सबका विकास हो 
इसी सोच को दे गए आकार।
 मानव सेवा ही सच्ची सेवा है 
था यही उनकी सोच का प्रमुख आधार।।

 किस-कस उपाधि से नवाजे उनको,
 बाबा साहब थे अनंत गुणों का भंडार।।
 कानून विद, एक महान जन हितैषी, अनेक भाषाओं के ज्ञाता थे वे, थे अति उम्दा सलाहकार ।
भलीभांति जानते थे जिम्मेदारियां और अधिकार।।
 लोकतंत्र की मजबूती रीढ़ थे,
 निभाया बेहतरीन अपना हर किरदार।।

 हो ना शोषण कभी किसी का,
 यही था उनकी सोच का सुंदर संसार।
 शिक्षित बनो, संगठित रहो और संघर्ष करो,
दे गए इस सोच को सुंदर आकार।।
पुरुषों समान औरतों को मिले वेतन
और मिले उन्हे मताधिकार।
प्रसूति अवकाश की व्यवस्था भी देन है
उनकी,उनकी सोच को शत शत नमस्कार।।
हफ्ते में मिले एक अवकाश सबको,
प्रोविडेंट फंड व्यस्था को भी कर गए साकार।।
किन किन उपलब्धियों को गिनवाएं उनकी,शब्द भी जाते हैं हार।।

महान विभूतियां कभी जाति या धर्म विशेष की नहीं होती धरोहर,
 देश ही नहीं प्रदेश भी कर रहा स्वीकार।
 उनकी आत्मकथा को तो कोलंबिया विश्वविद्यालय में पढ़ाया जाना,
 करता है इस सत्य से इकरार।।
देशकाल सीमा धर्म सरहदों से ऊपर थे बाबा साहब,
 आने वाली पीढ़ियां शायद ही उनके अस्तित्व का कर पाए एतबार।।
अपने ऊंचे कद से कर गए 
जाने क्या क्या वे गुलजार।
स्व  से सर्वे को बाबा साहब ने दिया था अपने जीवन में उतार।।
        स्नेह प्रेमचंद

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