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मधुरम मधुरम नाता भाई बहन का (थॉट बाय स्नेह प्रेमचंद)

मधुरम मधुरम है नाता भाई बहन का, सबसे लंबा,सबसे सुंदर बंधन प्रेम का,
बरखा प्रेम की होती बेशुमार।।

जब जिंदगी परिचय कराती है अनुभूतियों से, 
तब से ही होते हैं एक दूजे के दीदार।।
लड़ झगड़ कर भी हो जाते हैं पहले से,
इसी को कहते हैं परिवार।।
नोक झोंक की बेशक होती रहे झंकार।
खामोशी कभी भी इस नाते में,अपने पांव न पाए पसार।।
गिले,शिकवे,शिकायत बेशक हों,
पर चित में न पनपे कभी एक दूजे के लिए विकार।।

 परिवर्तन तो नियम है जीवन का,
 बदलते रहते हैं हमारे किरदार।।
 जीवन की इस आपाधापी में भाई बहन होते सदा,
 एक दूजे के सुख दुख में शुमार।

 साथ ना छूटे प्रेम डोर न टूटे,
रहे प्रेम सदा बरकरार।
 एक बार आती है समझ में,
 प्रेम ही है इस रिश्ते का आधार।।

मतभेद हो पर मनभेद ना हो,
 कभी रूठ जाए अगर कोई एक, दूसरा मनाने का करले इसरार ।।
कुछ कर दरगुजर,कुछ कर दरकिनार।

 सबकी सोच अलग है अनुभव अलग है अलग ही होता है सबका संसार।।
 पर इस संसार में, सदा जगह रहे एक दूजे की,
 यही है इस जीवन का सार ।।

मात-पिता का अक्स आता है नजर एक दूजे में,
नहीं कर सकते इस सत्य से इनकार।
 वक्त की धूल बेशक कई बार ला देती है इस नाते में दरार ।
खुद पहल करके हटा दो मलिन मन से धुंध कुहासे,
 जीवन नहीं मिलता बार बार।।

जीवन के सफर में पुर्सान ए हाल हैं
भाई बहन,
 सुख दुख हों सब सान्झे,
कभी ना हो कोई तकरार।।
           स्नेह प्रेमचंद

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