ऐ मेटे वतन के लोगों,
चलो थोड़ा टटोलें
1919,13 अप्रैल का इतिहास।
जलियांवाला बाग में जो अंधाधुंध गोलीबारी की थी जनरल डायर ने,
बिछा दी थी अनेकों अनेक लाश।।
क्रूरता ने नँगा तांडव किया था उस दिन,
हुई थी मानवता कलंकित और शर्मसार।।
कुछ भूने गए गोली के आगे,
कुएं में भी कूदे बेशुमार।
आओ नमन करें और दें श्रद्धाञ्जलि उन वीरों को,
हुए जो दमन नीति का शिकार।।
बेबसी हो गई थी और भी बेबस,
फिजा में गूंज रहा था चीत्कार।
जिंदगी आलिंगन कर रही थी मौत का
बर्बरता दिखा रही थी एकाधिकार।।
सौ बरस से भी ऊपर बीत गए,
पर कायनात में आज भी है जैसे चीख पुकार।।
शहीद कभी नहीं मरते,रहते हैं जिंदा युगों युगों तक,कर लो सत्य को स्वीकार।।
स्नेह प्रेमचंद
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