कहां सो जाती है अंतर्मन की आवाज??? यूं ही तो कुदरत नहीं होती नाराज। यूं ही तो नहीं बजता महामारी, भुख मरी, बाढ़,सुनामी का साज।। देख इंसान के काम घिनौने, हो जाते हैं सजल नयन। अथाह अनंत सुसमभावनाओं में से हम करते हैं ये कैसा चयन??? ईश्वर हमे सदा देता है विकल्प, हमारा चयन ही हमारा भाग्य निर्धारक होता है। वो चयन बन जाता है कर्म हमारा, मिलता है उसे हर परिणाम वही, वो बीज जैसे यहां पर बोता है।। फिर कहते हैं नाराज है कुदरत, अंतर्मन इंसा का यूं कैसे सोता है,???? निज रुधिर और सपनो से सींच कर होता है जग में औलाद जन्म। बेटा हो चाहे बेटी हो, उसकी अच्छी परवरिश करना है हमारा धर्म।। बेटा ज़रूरी है बेटी है,है ये कैसी रिवायत कैसा रिवाज??? कहां सो जाती है अंतर्मन की आवाज????? अपने सबसे बड़े खैर ख्वाह ही बेगानेपन की जब बजाते हैं शहनाई। कड़कने,फटने,गरजने लगते हैं ये बादल, कोलाहल करने लगती है तन्हाई।। क्यों नहीं फटा धरा का जिया, क्यों नहीं अनंत गगन डोला। त्याग किया जब किसी मासूम का उसके अपनों ने ही, क्यों सारा ज़माना मिल कर नहीं बोला????? कोई देखे न देखे,वो सब देखता है, वो सब जानता है।। फिर क्यों ...