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यूं ही तो कुदरत नहीं होती नाराज ((विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

 कहां सो जाती है अंतर्मन की आवाज???
यूं ही तो कुदरत नहीं होती नाराज।
यूं ही तो नहीं बजता 
महामारी, भुख मरी, बाढ़,सुनामी का साज।।

देख इंसान के काम घिनौने,
हो जाते हैं सजल नयन।
अथाह अनंत सुसमभावनाओं में से
हम करते हैं ये कैसा चयन???

ईश्वर हमे सदा देता है विकल्प,
हमारा चयन ही हमारा भाग्य निर्धारक होता है।
वो चयन बन जाता है कर्म हमारा,
मिलता है उसे हर परिणाम वही,
वो बीज जैसे यहां पर बोता है।।

फिर कहते हैं नाराज है कुदरत,
अंतर्मन इंसा का यूं कैसे सोता है,????
निज रुधिर और सपनो से सींच कर
होता है जग में औलाद जन्म।
बेटा हो चाहे बेटी हो,
उसकी अच्छी परवरिश करना है हमारा धर्म।।
बेटा ज़रूरी है बेटी है,है ये कैसी रिवायत कैसा रिवाज???
कहां सो जाती है अंतर्मन की आवाज?????

अपने सबसे बड़े खैर ख्वाह ही
बेगानेपन की जब बजाते हैं शहनाई।
कड़कने,फटने,गरजने लगते हैं ये बादल,
कोलाहल करने लगती है तन्हाई।।

क्यों नहीं फटा धरा का जिया,
क्यों नहीं अनंत गगन डोला।
त्याग किया जब किसी मासूम का
उसके अपनों ने ही,
क्यों सारा ज़माना मिल कर नहीं बोला?????
कोई देखे न देखे,वो सब देखता है,
वो सब जानता है।।
फिर क्यों कठपुतली सा इंसा अपने को सर्वे सर्वा मानता है???
आओ आज करें एक अभिनव पहल का आगाज़।
बेटा बेटी दोनों ही हैं दो आंखें हमारी,दोनो ही हमारा कल थे,कल होंगे और दोनो ही हैं हमारा आज।।
कैसे सो जाती है अंतर्मन की आवाज????

गलती की होती है क्षमा,
पाप और गुनाह की सजा नही
इसका तो करना पड़ता है भुगतान।
हर अनुभव शिक्षक है इस जग में,
रहें न इस सत्य से अंजान।।
हर क्रिया की होती है प्रतिक्रिया,
खिले चमन भी बन जाते हैं शमशान।।
चार दिनों की छोटी सी जिंदगी में,
किसी बुरे कर्म का तो,हो ही ना कोई नामों निशान।।

एक बात नहीं आती समझ,
कहां सो जाती है अंतर्मन की आवाज???
जब करोगे विचरण अंतर्मन के गलियारों में,
खुल जायेंगे सारे ही राज।।।

कचोटेगी आत्मा,रूठेगा परमात्मा,
सिसकेगी सिसकियां,घुट जाएगी हर आवाज।
यूं ही तो नहीं होती ये कुदरत नाराज।। 

Comments

  1. Insaan ke kukurmon se kudarat naraaz honi hi thi ...Ishwar ki shakti aparampar hai aur ye sarv shaktiman hai ... beautifully expressed thoughts 👌🏻

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  2. Thanks for your right comment

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