Skip to main content

*ऐसा वर दे,निर्भय कर दे* विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा

ऐसा वर दे, निर्भय कर दे, 
कर दे ना भगवान।
 खौफजदा हैं बालक तेरे,
दे देना अब जीवनदान।

 ऐसा वर दे निर्भय कर दे___________

 हे बजरंगी ! ला, फिर कोई बूटी,
 बच जाए जो सबके प्राण।

 पीड़ा हर ले, मेहर कर दे,
कर देना तू जग कल्याण।
 ऐसा वर दे, निर्भय कर दे,
 आहत है इंसान।।
 सहमे हुए हैं बालक तेरे,
 दे देना तूं जीवनदान।।

 हे माधव!तू फिर से आ जाओ,
 दे जा फिर गीता का ज्ञान।
विचलित है मन, व्याकुल है तन,
आहत है हर एक इंसान।

मेहर कर दे,पीड़ा हर ले,
 हर ले तू अंधकार।
 ला उजियारा, दिखा दे किनारा,
 थमा दे ना पतवार।
 ऐसा वर दे, निर्भय कर दे,
 कर दे ना उपकार।।
 सहमे हुए हैं बालक तेरे, 
दे, भवसागर से तार।।

 हे भोले! फिर पीले गरल तू,
 बना इसको रूह का परिधान।
 सागर मंथन सा चल रहा है
 दे दे जग को अमृत दान।।
 आस की डोरी टूटे कभी ना,
 भरोसे की चादर तान।।

 ऐसा वर दे, निर्भय कर दे,
आहत है इंसान।
 तेरी शरण बस एक सहारा,
 दे दे, अब तूं जीवनदान।।

 हे राघव! फिर से आ जाओ, 
आहत है इंसान।
 करोना के रावण ने, हर ली हैं खुशियां,
 सर्वत्र हो रहा त्राहिमाम।।
 मौत के दैत्य ने पांव पसारे,
जीना हुआ है हराम ।।

ऐसा वर दे, निर्भय कर दे, 
कर दे ना भगवान।
कर दो मर्दन, जग करे क्रंदन,
 हुआ जैसे सब सुनसान।।

 मौत से हार रही जिंदगानी,
 दे दो ना अब जीवनदान।
 पीड़ा हर ले, मेहर कर दे, 
कर दे ना अब जनकल्याण।
खौफजदा हर बालक तेरा, 
सुन ले ना भगवान।

 हे मा दुर्गा! फिर से आ जाओ,
 तेरे बच्चे हैं बहुत नादान।
 करो अब रक्षा, संभालो उन्हें तुम,
 दे दो ना उन्हें जीवनदान।।
 ऐसा वर दे, निर्भय कर दे,
 कर देना अब तो भगवान।
सहमे हुए हैं बालक तेरे,
 दे देना उन्हें जीवनदान।।
          स्नेह प्रेमचंद

Comments

Popular posts from this blog

वही मित्र है((विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

कह सकें हम जिनसे बातें दिल की, वही मित्र है। जो हमारे गुण और अवगुण दोनों से ही परिचित होते हैं, वही मित्र हैं। जहां औपचारिकता की कोई जरूरत नहीं होती,वहां मित्र हैं।। जाति, धर्म, रंगभेद, प्रांत, शहर,देश,आयु,हर सरहद से जो पार खड़े हैं वही मित्र हैं।। *कुछ कर दरगुजर कुछ कर दरकिनार* यही होता है सच्ची मित्रता का आधार।। मान है मित्रता,और है मनुहार। स्नेह है मित्रता,और है सच्चा दुलार। नाता नहीं बेशक ये खून का, पर है मित्रता अपनेपन का सार।। छोटी छोटी बातों का मित्र कभी बुरा नहीं मानते। क्योंकि कैसा है मित्र उनका, ये बखूबी हैं जानते।। मित्रता जरूरी नहीं एक जैसे व्यक्तित्व के लोगों में ही हो, कान्हा और सुदामा की मित्रता इसका सटीक उदाहरण है। राम और सुग्रीव की मित्रता भी विचारणीय है।। हर भाव जिससे हम साझा कर सकें और मन यह ना सोचें कि यह बताने से मित्र क्या सोचेगा?? वही मित्र है।। बाज़ औकात, मित्र हमारे भविष्य के बारे में भी हम से बेहतर जान लेते हैं। सबसे पहली मित्र,सबसे प्यारी मित्र मां होती है,किसी भी सच्चे और गहरे नाते की पहली शर्त मित्र होना है।। मित्र मजाक ज़रूर करते हैं,परंतु कटाक...

बुआ भतीजी

सकल पदार्थ हैं जग माहि, करमहीन नर पावत माहि।।,(thought by Sneh premchand)

सकल पदारथ हैं जग मांहि,कर्महीन नर पावत नाहि।। स--ब कुछ है इस जग में,कर्मों के चश्मे से कर लो दीदार। क--ल कभी नही आता जीवन में, आज अभी से कर्म करना करो स्वीकार। ल--गता सबको अच्छा इस जग में करना आराम है। प--र क्या मिलता है कर्महीनता से,अकर्मण्यता एक झूठा विश्राम है। दा--ता देना हमको ऐसी शक्ति, र--म जाए कर्म नस नस मे हमारी,हों हमको हिम्मत के दीदार। थ-कें न कभी,रुके न कभी,हो दाता के शुक्रगुजार। हैं--बुलंद हौंसले,फिर क्या डरना किसी भी आंधी से, ज--नम नही होता ज़िन्दगी में बार बार। ग--रिमा बनी रहती है कर्मठ लोगों की, मा--नासिक बल कर देता है उद्धार। हि--माल्य सी ताकत होती है कर्मठ लोगों में, क--भी हार के नहीं होते हैं दीदार। र--ब भी देता है साथ सदा उन लोगों का, म--रुधर में शीतल जल की आ जाती है फुहार। ही--न भावना नही रहती कर्मठ लोगों में, न--हीं असफलता के उन्हें होते दीदार। न--र,नारी लगते हैं सुंदर श्रम की चादर ओढ़े, र--हमत खुदा की सदैव उनको मिलती है उनको उपहार। पा--लेता है मंज़िल कर्म का राही, व--श में हो जाता है उसके संसार। त--प,तप सोना बनता है ज्यूँ कुंदन, ना--द कर्म के से गुंजित होता है मधुर व...