तूं सरगम है जीवन की,
बारह मास ही करती प्रेम बरसात।
सावन भादों के तो हैं दो ही महीने,
तूं लम्हा लम्हा देती प्रेम सौगात।।
तूं अनहद नाद है जीवन का,
सच में तेरी निराली है बात।
नन्ही सी लाडो कितनी बड़ी हो गई
आज चल पड़ी यादों की बारात।।
मां के बारे में तो जाने कब से
ये जग सारा ही लिखता आया है।
आज मां ने लिखा है एहसासों की
लेखनी से,
बेटी का होता कितना सुखद सा साया है।।
सुनने में भले ही अच्छा लगता है बेटा हुआ है,
पर जीने में बेटी का नाम ही
जुबान पर आया है।।
तूं हंसती रहे,मुस्कुराती रहे,
मैं तो इसी दुआ की करूंगी बरसात।
तूं हम नफस भी है,अज़ीज़ भी है,
सच में ईश्वर की करामात।।
स्नेह प्रेमचंद
Comments
Post a Comment