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घर होता है मां बाप से (विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा)

मा बाप से घर घर होता है,
उन बिन वो होता है एक मकान।

प्रेम,ममता औऱ मेहनत के
 इस संगम से ही,
बन जाता है जीने का सामान।।

चित में नहीं रहती कभी चिंता कोई
जब तक रहता है इनका ठंडा साया।
ये होते हैं सबसे खास 
खैर ख्वाह्न हमारे,
क्यों इंसा ये समझ न पाया???

सबसे खुबसूरत हैं वे लम्हे,
जब तलक वे इस जग में 
करते हैं वास।
वैसे जाने के बाद भी कहीं नहीं जाते वे,
ध्यान से देखो,हैं हरदम ही तो हमारे पास।।

भाई बहनों में अक्सर अक्स
 उनका जाता है नजर।
एक गुज़ारिश है बस मेरी,
हो कैसे भी हालात आपके,
मन से करना उनकी कदर।।

हर लम्हा वो देते हैं दुआएं, 
जब तक चलता है उनका सफर।।
हमारे जन्म से,उनके जनाजे तक,
हम करते हैं उनके दिल में बसर।।

एक बात आती है समझ,
रहते हैं जो साथ मात पिता के,
सच में वे ही हैं धनवान।
मात पिता इस जग में,
होते हैं देहधारी भगवान।।

बेहतर हो,जान लो जल्द से जल्द
सच्चाई,कब तक बने रहोगे अनजान????
        स्नेह प्रेमचंद

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