वेद पढ़ो न पढ़ो ज़रूरी तो नहीं
वेदना पढ़ो एक दूजे की,
बहुत बहुत ज़रूरी है।।
छप्पन भोग खाएं या न खाएं
पर दाल रोटी सबको मयस्सर हो,
बहुत बहुत ज़रूरी है।।
आलीशान बंगला हो या न हो,
पर सिर छुपाने को सब के पास
एक झोंपड़ी तो हो,
बहुत बहुत ज़रूरी है।।।
वार्डरोब भरे पड़े हों,
ज़रूरी नहीं,पर सबके तन पर
वस्त्र हों,बहुत बहुत ज़रूरी है।।।
स्नेह प्रेमचंद
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