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सास नहीं,सांस हो तुम((विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))


सास नहीं,सांस हो तुम,
दिल नहीं धड़कन हो तुम,
 सारी की सारी।
चलो मां, अब घर चलते हैं,
रिटायर होने की आ गई है बारी।।

आप तो मिसाल हैं हम सबके लिए,
जिंदगी के तूफानों से भी जो ना हारी।।
रुकी नहीं,थकी नहीं, बढ़ती ही रही,
जैसे शोला बन जाता है चिंगारी।।

कंठ नहीं,आवाज हो तुम,
जिंदगी का मधुर सा साज हो तुम,
आप के होने से ही,
लगती है सुंदर कायनात ये सारी।
चलो मां,अब घर चलते हैं,रिटायर होने की आ गई है बारी।।

जिंदगी हर मोड़ पर एक नई जंग रही,
अनुभव लिखते रहे जाने कितने ही किस्से और कहानी।
अधिक तो नहीं आता कहना,
पर आप हो हर कहानी की महारानी।।
मां का साया हो गर सिर पर,
बीत जाती है हर रात तूफानी।।

संघर्षों से आप बिखरी नहीं,आप निखरी,
आपने अकेले ही हम सब की जिंदगी संवारी।
मात पिता दोनों का किरदार निभाया आपने,कभी भी हिम्मत कहीं न हारी।।
चलो मां अब घर चलते हैं,घर जाने की आ गई है बारी।।

हौले हौले ये दिन एक दिन आ ही जाता है,तन मन दोनो से ही करनी पड़ती है तैयारी।।
एक पड़ाव बीत गया जिंदगी का,
दूसरे की आ गई है बारी।।
कभी बहू नहीं,सदा बेटी समझा आपने,अपने कर्तव्य कर्मों को पूरा किया आपने,जैसे मंदिर में पूजा करता है कोई पुजारी।।
चलो मां अब घर चलते हैं,घर जाने की आ गई है बारी।।
        स्नेह प्रेमचंद
            

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