Skip to main content

क्यों कुछ भी नजर नहीं आता था???

क्यों हमे कुछ भी नजर नहीं आता था????
वो अकेली जाने क्या क्या करती थी,
हम सब उसे लेते थे सहजता से,
क्यों मन विचलित नहीं हो जाता था???
उपलब्ध सीमित संसाधनों में भी वो हर इच्छा पूरी करती थी,
लाती न थी शिकन कभी माथे पर,
सबका पेट बखूबी भरती थी।।
हम फरमाइशो का बड़ा सा पिटारा
कैसे झट से खोला करते थे।
खाना खा कर बर्तन भी खाट तले ही 
धरते थे।।
हमे क्या चाहिए यह ज़रूरी था नजरों में हमारी,
हमे अपना अपना ही सारा नजर आता था।
तूं बनी रही एक मशीन सी काम की,
हमे मनचाहा सब कुछ मिल जाता था।।
क्यों नहीं पिंघलता था दिल हमारा,
क्यों हमे वो नजर नहीं आता था।
क्यों नजर नहीं आता था उसका वो बर्तनों का ढेर मांजना,
क्यों नजर नहीं आता था वो सिर पर 
चारा रख कर लाना,
वो गेहूं की दस दस बोरियां तोलना,
वो घणी गर्मी में गर्म तंदूर पर रोटियां 
सेंकना,
वो कपड़ों को धो धो बुगला सा बनाना,
वो ईंटों के फर्श को बोरी से रगड़ रगड़ लाल लाल लिश्काना,
वो कितने ही लोगों को खुशी खुशी खाना खिलाना,
वो घने सवेरे उठ कर काम में लग जाना,
वो सावन भादों में खाट खड़ी कर बोरी बिछा कर चूल्हे पर रोटी  पकाना,
सबकी ब्याह शादी में भाग भाग कर हर जिम्मेदारी को निभाना,
वो दीवाली पर भैसों की रंगीन सी गलपट्टी बनाना,
वो बेटियों के आने पर भाग भाग बाजारों के चक्कर लगाना,
नाती,नातिन,पोता,पोती सबके जन्मोत्सव पर गोंद के लड्डू बनाना,
वो नए लोगों के परिवार संग जुड़ जाने पर समझौतों पर तिलक लगाना।।
कभी किसी से कुछ न कहना,बस करते चले जाना,
सब कुछ करते करते भी वात्सल्य का झरना बहाना।।
अब खुद मात पिता बन कर सब साफ साफ नजर आता है।
जैसे कोई धुंधले आईने से बरसों पुरानी जमी धूल हटाता है।।
        स्नेह प्रेमचंद

Comments

Popular posts from this blog

वही मित्र है((विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

कह सकें हम जिनसे बातें दिल की, वही मित्र है। जो हमारे गुण और अवगुण दोनों से ही परिचित होते हैं, वही मित्र हैं। जहां औपचारिकता की कोई जरूरत नहीं होती,वहां मित्र हैं।। जाति, धर्म, रंगभेद, प्रांत, शहर,देश,आयु,हर सरहद से जो पार खड़े हैं वही मित्र हैं।। *कुछ कर दरगुजर कुछ कर दरकिनार* यही होता है सच्ची मित्रता का आधार।। मान है मित्रता,और है मनुहार। स्नेह है मित्रता,और है सच्चा दुलार। नाता नहीं बेशक ये खून का, पर है मित्रता अपनेपन का सार।। छोटी छोटी बातों का मित्र कभी बुरा नहीं मानते। क्योंकि कैसा है मित्र उनका, ये बखूबी हैं जानते।। मित्रता जरूरी नहीं एक जैसे व्यक्तित्व के लोगों में ही हो, कान्हा और सुदामा की मित्रता इसका सटीक उदाहरण है। राम और सुग्रीव की मित्रता भी विचारणीय है।। हर भाव जिससे हम साझा कर सकें और मन यह ना सोचें कि यह बताने से मित्र क्या सोचेगा?? वही मित्र है।। बाज़ औकात, मित्र हमारे भविष्य के बारे में भी हम से बेहतर जान लेते हैं। सबसे पहली मित्र,सबसे प्यारी मित्र मां होती है,किसी भी सच्चे और गहरे नाते की पहली शर्त मित्र होना है।। मित्र मजाक ज़रूर करते हैं,परंतु कटाक

सकल पदार्थ हैं जग माहि, करमहीन नर पावत माहि।।,(thought by Sneh premchand)

सकल पदारथ हैं जग मांहि,कर्महीन नर पावत नाहि।। स--ब कुछ है इस जग में,कर्मों के चश्मे से कर लो दीदार। क--ल कभी नही आता जीवन में, आज अभी से कर्म करना करो स्वीकार। ल--गता सबको अच्छा इस जग में करना आराम है। प--र क्या मिलता है कर्महीनता से,अकर्मण्यता एक झूठा विश्राम है। दा--ता देना हमको ऐसी शक्ति, र--म जाए कर्म नस नस मे हमारी,हों हमको हिम्मत के दीदार। थ-कें न कभी,रुके न कभी,हो दाता के शुक्रगुजार। हैं--बुलंद हौंसले,फिर क्या डरना किसी भी आंधी से, ज--नम नही होता ज़िन्दगी में बार बार। ग--रिमा बनी रहती है कर्मठ लोगों की, मा--नासिक बल कर देता है उद्धार। हि--माल्य सी ताकत होती है कर्मठ लोगों में, क--भी हार के नहीं होते हैं दीदार। र--ब भी देता है साथ सदा उन लोगों का, म--रुधर में शीतल जल की आ जाती है फुहार। ही--न भावना नही रहती कर्मठ लोगों में, न--हीं असफलता के उन्हें होते दीदार। न--र,नारी लगते हैं सुंदर श्रम की चादर ओढ़े, र--हमत खुदा की सदैव उनको मिलती है उनको उपहार। पा--लेता है मंज़िल कर्म का राही, व--श में हो जाता है उसके संसार। त--प,तप सोना बनता है ज्यूँ कुंदन, ना--द कर्म के से गुंजित होता है मधुर व

बुआ भतीजी