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पिता है तो (((विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा)))

पिता है तो, जागृत से रहते हैं अधिकार।
खुद जिम्मेदारी का ओढ़ दुशाला,
हमें बना देते हैं हकदार।।

अपने अस्तित्व से हमारे व्यक्तित्व को गढ़ने वाला,पिता ही तो होता है शिल्पकार।।
हमारे बारे में हमारे से अधिक सोचने वाले को शत शत नमस्कार।।

स्नेह की ऊष्मा,सुरक्षा की माटी,
अपनत्व के पानी से बनता है यह नाता अगाध।
अपने चिंतन में रहती है चिंता सदा 
बच्चों की,डालता है अक्सर जो दुलार की खाद।।

पिता है तो, अपना सा लगता है सारा बाजार।
पिता है तो, सब सपने होते साकार।
पिता ही तो है,जो सपनो को देता आकार।।
कोई अभाव न दे दस्तक बच्चों के जीवन में,
यही होता है पिता का प्यार।।
ठहराव है कम,आपाधापी है अधिक पिता के जीवन में,
हालात और वक्त बना देते हैं उन्हें जिम्मेदार।।
और अधिक नहीं आता कहना,
पिता जीवन का सबसे सशक्त आधार।।

अभिमन्यु सा कहीं फंस न जाए बच्चा,इस निर्मम जगत के चक्रव्यूह में,यही सोच रहती है सोच का प्रमुख आधार।
अर्जुन पास होता तो शायद अभिमन्यु को चक्रव्यूह में जाने ही न देता,पर अर्जुन रूपी इस पिता को दूर होना तो पड़ता है न एक न एक दिन,चलता रहता है संसार।।
कहीं अकेला न रह जाए पुत्र, बने इतना सक्षम,अकेला होने पर भी मजबूती से डटा रहे,ऐसा होता है पिता का किरदार।।

वार्तालाप भले ही कम होगा पिता पुत्र में,पर प्रेम मापने का कोई कहीं बना ही नहीं होगा पैमाना।
बड़ी विचित्र और अदभुत है भारतीय पिता पुत्र की जोड़ी,  मध्यस्थता करता रहता है 
मां का ही तराना।।

बेशक शब्द कम होंगे,आवाज होगी गहरी,अजब सा भी लगता होगा व्यवहार।
विडंबना ही है ये पिता के जीवन की,जिसे चाहता सबसे अधिक है,पर मां जैसे वो कह नहीं पाता,
उसके अनकहे जज्बातों को नहीं मिल पाता इजहार।।
क्या करूं ऐसा कि सब खुश हो जाएं की जदौजहद अक्सर जोड़ नहीं पाती है दिलों के तार।।
स्नेह स्पर्श भी नहीं मिलता अक्सर पिता को बच्चों का,
एक खामोशी अक्सर लेती है पांव पसार।।

पिता प्रेम है,प्रेम कर्म है,
है पिता ही कर्तव्य का सार।
पिता धीरज,पिता मर्यादा,पिता मित्र,और पिता होता है सच्चा सलाहकार।
पिता चाहता है मुकम्मल हो हर इच्छा बच्चे की,
पर अनुशासन की भी होती है दरकार।।

कहीं भी देख हो नहीं मिलेगा,
कभी पिता सा गमगुसार।।
सजता है जीवन हमारा जिससे,
पिता तो जीवन का वो अलंकार।
मानो चाहे या ना मानो,
पिता जीवन का सच्चा श्रृंगार।।
अब भी अमिट है अंतस में मेरे,
पिता की शख्शियत,पिता का किरदार।।

पिता हितैषी,पिता मार्ग दर्शक,
पिता पथ प्रदर्शक,
पिता से ही पूर्ण है परिवार।
पिता है तो, ताउम्र ही रहता है हमारा पूर्ण संसार।।

पिता तो है वो आदित्य,
तेज जिसका रोशन कर देता है हमारा जीवन सारा।
उसके अस्त होते ही हो जाता है
एक अजीब सा अंधेरा,
सच में अस्तित्व ही पिता का होता न्यारा।।

नहीं लेखनी में वो ताकत,
जो पिता की  शख्शियत का कर 
सके बखान।
अपने वजूद से हमारे अस्तित्व को
लिखने वाले की दास्तान ही होती है महान।।
मतभेद बेशक हो जाए पर कभी मनभेद न हो इस नाते में,
पिता ही तो पूरे करता है हमरे सारे अरमान।।

नजर नहीं नजरिया चाहिए पिता को जानने के लिए,
कहती हूं मैं एक नहीं,सौ सौ बार।
खामियां तो आ जाती हैं नजर अक्सर,पर खूबियों को कर देते हैं हम दरकिनार।।

हमारे अवगुणों को जाने कितनी ही बार करता है पिता दर गुजर,
हम से तो हो ही नहीं पाती एक भी बार।
खुद पिता बन कर होता अहसास है,
दिल हमने तोड़ा पिता का कितनी ही बार।।

 पिता भीतर से करता अगाध प्रेम है,
बेशक ऊपर से नहीं करता इजहार।
मजबूत है पिता,सख्त नहीं है,
कल्याण की भावना ही उसकी सोच का एकमात्र आधार।।
संवाद हीनता ना पांव पसारे कभी इस नाते में,
देहधारी ईश्वर ही तो है पिता,
इसके प्रेम का पा नहीं सकते हो पार।।

पिता हर दुविधा को बदल देता है सुविधा में,
बन जाता है हर समस्या का समाधान।
हम हैं कली,फूल,पत्ते और जिस बगिया के,है पिता उसी बगिया का बागबान।।
है साया पिता का जिसके सिर पर,
सही मायने में वो धनवान।
मानो चाहे या ना मानो,बाबुल बिन जीवन वीरान।।

तपिश है घणी,तो ठंडा छाया है पिता,
बारिश है घणी,तो बड़ा सा छाता है पिता,
जाड़ा है घणा,तो नर्म गर्म सा दुशाला है पिता,
जिंदगी के सर्द गर्म से बचाता है पिता,
उदास से चेहरे पर मुस्कान लाता है पिता,
सुरक्षा,संरक्षा और संवृधि का प्रदाता है पिता,
मेरे हिसाब से सबसे गहरा और सुंदर नाता है पिता।।

जब एक पिता ताउम्र ए टी एम बन सकता है तो बच्चे क्यों नहीं बन सकते उसका आधार।। 
जो ऊंगली पकड़ चलना सिखाता है हमे,उसके जीवन की सांझ में कांपते हाथों को थामने से हम क्यों करते हैं इनकार???

पिता की प्रॉपर्टी बांटने से ज़रूरी हैं औलाद,पिता के सुख दुख सांझे करना करे स्वीकार।
जिम्मेदारियां तो हो जाती है तकसीम अक्सर, पर अधिकारों पर  अक्सर होता है एकाधिकार।।

एक पिता कब,क्या,क्यों,कैसे,कितना करता है हमारे लिए,ये तो पिता बनने के बाद ही समझ में आता है।
सच है सौ फीसदी ये बात,
पिता की ओट से गहरा नहीं कोई भी नाता है।
किसी को जल्दी किसी को देर से,
पर समझ तो सबको ये आता है।।

मैने भगवान को तो नहीं देखा,
पर जब जब देखा पिता की ओर
श्रद्धा से झुक जाता मेरा माथा है।।
लगाव है पिता,ठहराव है पिता,
सच में पिता महानता और प्रेम की गौरव गाथा है।।

मात पिता होते हैं जब इस जग में,
रूठा भी केवल जब तक जाता है।
उनके बाद तो उनके जैसा सच में,
कोई भी तो नहीं मनाता है।।

दौर ए आजमाइश में अहल ए दिल है पिता,
जिंदगी के सफर में पुर्सान ए हाल है पिता,
हमारे सुनहरे मुस्तकबिल के लिए अपने वर्तमान को हंसते हंसते कुर्बान कर देता है पिता।
हमारी हसरतों के लिए अपनी जरूरतों को भी न्योछावर कर देता है पिता।

ध्यान से सोचो,हमारे जन्म से अपनी मृत्यु तक,बस देता ही तो रहता है पिता।।
सच में पिता है तो जन्नत ही धरा पर आ जाती है।
पिता है तो पूरी की पूरी कायनात हसीन नजर आती है।।
         स्नेह प्रेमचंद





Comments

  1. What a beautiful and elaborate expression for a father !

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  2. हर बाबुल की हर बिटिया होती है
    राजकुमारी।
    निश्छल,निस्वार्थ का प्रेम भरा ये नाता,
    समझने की आ गई है बारी।।

    ReplyDelete

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