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मुस्कान ही है जिसका परिधान(( विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

मुस्कान ही है जिनका परिधान।
कर्म की गीता की यही पहचान।।
एक चौखट से दूसरी दहलीज तक
माना बहुत कम है फांसला,
पर आपकी कमी से लगेगा सुनसान।।
हंसते हंसते सुलझा लेती हो बड़ी बड़ी 
गुत्थीयां,होती नहीं कभी परेशान।।
आप वन में रहो या टू में रहो,
आए न जीवन में आपके कोई व्यवधान।।
      कर्म की कढ़ाई में साग बनाओ सफलता का,यही कर रहे हम गुणगान।।
हर खुशी मिले आप को जीवन में,
हों पूरे आपके सारे अरमान।
जगह की दूरी से दूर नहीं होती दोस्ती,
मन की दूरी ही मचाती है घमासान।।
आपकी हाजिरजवाबी के रहेंगे हम सदा कदरदान।।
दें दस्तक जब कपाट खोल देना दिल के,मधुर नातों से ही हम बनते हैं धनवान।।
     स्नेह प्रेमचंद

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